
छाया: स्मिता नागदेव के एफ़बी अकाउंट से
सृजन क्षेत्र
संगीत एवं नृत्य
प्रसिद्ध कलाकार
स्मिता नागदेव (सितार वादक)
• राग तैलंग
भारत के हृदय प्रदेश में अनेक ऐसी विभूतियां हुई हैं जिन्होंने भारत वर्ष के सांस्कृतिक दूत की भूमिका अपनी कला,पहनावे, खान-पान की शैली, व्यवहार कुशलता के जरिए बखूबी निभाई है। प्रभावशाली व प्रखर मेधा की धनी सितारवादक स्मिता नागदेव ऐसे सांस्कृतिक दूत के रूप में एक जगमगाता नाम है। नागपुर में जन्मी स्मिता अंतरराष्ट्रीय ख्याति के चित्रकार सचिदा नागदेव की तीन संतानों में सबसे बड़ी हैं। उनसे दो छोटे भाई हैं, जो पेशे से इंजीनियर हैं। सचिदा जी के एक संगीत साधक मित्र थे – सितारवादक वासुदेव राव आष्टेवाले। दूरदर्शी पिता ने इस अप्रतिम सितार गुरु की छाया में स्मिता को बहुत बाल्यकाल में ही सौंप दिया और शुरू हुई सितार के साए में स्मिता की परवरिश, वह भी ऐसी कठिन और अथक परिश्रम भरी कि नारी सुलभ कोमलता की प्रतिमूर्ति स्मिता की नन्हीं कोमल उंगलियों में रियाज़ दर रियाज़ गत्यात्मकता घुलती ही गई, घुलती ही गई।
किशोरावस्था तक आते-आते स्मिता में साक्षात् सरस्वती का अवतरण हो आने के पीछे यही मौन साधना थी जिसका श्रेय वे अपने सितार गुरू को उसी विनम्रता से देती हैं, जैसे सभी शीर्षस्थ कलाकार देते आए हैं। व्यक्तित्व में ऐसी गंभीरता और विनम्रता भी रियाज़ से ही आती है। इसका आभास स्मिता के व्यक्तित्व को देखने से ही हो जाता है। महज 7 वर्ष की उम्र में पहली बार घर के पास गणेशोत्सव में प्रस्तुति। औपचारिक रूप से स्मिता को पहली बार 14 वर्ष की उम्र में मुम्बई के प्रसिद्ध भातखण्डे संगीत समारोह में भारत के सुप्रसिद्ध गायक पं. दिनकर कैंकणी द्वारा किशोर कलाकार के रूप में वादन के लिये आमंत्रित किया गया। इस समारोह में विदुषी प्रभा अत्रे, वीणा सहस्त्रबुद्धे और उस्ताद ज़ाकिर हुसैन इत्यादि भी थे।
स्मिता की संगीत यात्रा के कई पड़ाव रहे हैं, जैसे -साउथ सेन्ट्रल ज़ोन कल्चरल सेन्टर का वार्षिक समारोह (विशाखापट्टनम एवं मैसूर), स्वामी हरिदास संगीत सम्मेलन और सुर-सिंगार संसद (दोनों मुम्बई), इंडिया इंटरनेशनल सेन्टर (नई दिल्ली), नेशनल सेन्टर फॉर परफॉर्मिंग आर्ट्स (मुम्बई), परंपरा उत्सव (खजुराहो), मल्हार उत्सव (जयपुर), युवा कलाकार महोत्सव (संगीत नाटक अकादमी,जम्मू), भारत भवन (भोपाल), तानसेन समारोह (ग्वालियर) और भाभा एटॉमिक सेन्टर (मुंबई)। दूसरी तरफ उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर अपनी प्रतिभा का परचम लहराया है। उदाहरण के लिए – दुबई, शारजाह, यूनाइटेड नेशन्स (स्विटज़रलैंड), गीमे म्यूजियम (पेरिस), गुरु अमजद अली के साथ (विगमोर हॉल, लंदन), नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ सिंगापुर एवं नानयांग टेक्नीकल यूनिवर्सिटी सिंगापुर (प्रदर्शन व व्याख्यान), ‘फ़ेस्टिवल ऑफ इंडिया (कज़ाकिस्तान व किर्गिस्तान), हांगकांग नेशनल एकेडमी ऑफ परफॉर्मिंग आर्ट्स, इन्टरनेशनल म्यूज़िक फ़ेस्टिवल चीन एवं सेन फ्रांसिस्को इत्यादि।
खैरागढ़ संगीत विश्वविद्यालय से संगीत में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त करने वालीं स्मिता की वादन शैली की विशेषता है बीन अंग का वादन, जो ध्रुपद गायकी से प्रेरित है। सितार में लरज-खरज (मोटे तारों का प्रयोग) आलापदारी, मींड काम और सपाट ताने। उन्होंने उस्ताद अमजद अली खां साहब से रागों की बारीकियां और उन्हें बरतना सीखा। उनके साथ लंदन में प्रस्तुति देना स्मिता के लिए एक रोमांचकारी अनुभव रहा। स्मिता के पहले गुरु आष्टेवाले साहब ने उनसे कहा था कि वे एक दिन बहुत बड़ी कलाकार बनेंगीं। देश-विदेश में उनकी प्रस्तुतियां होंगी और तब वे भी साथ चलेंगे। उनकी यह बात स्मिता के मन में घर कर गई। उन्होंने तय किया कि वे अपने गुरु की इस इच्छा को ज़रूर पूरा करेंगी। लेकिन 1994 में आष्टेवाले गुरु जी का देहांत हो गया। स्मिता को यह बात बहुत चुभती है कि वे उनकी इच्छा पूरी नहीं कर पाईं। इस वेदना की प्रतिपूर्ति स्मिता इस तरह करती हैं कि प्रत्येक प्रस्तुति के पहले वे अपने साज़ को ही गुरु मान उसे प्रणाम करती हैं। स्वभाव से मितभाषी लेकिन अपने नाम के अनुरूप से स्मित बिखेरने वाली स्मिता की संगीत यात्रा गुरु की स्मृतियों के साथ जारी है। स्मिता नागदेव इन दिनों नई कम्पोजिशन तैयार कर रही हैं। ये कम्पोजिशन फ्रांस के 19वीं सदी में प्रसिद्ध हुए कुछ कवियों की कविताओं पर आधारित है। अप्रैल-मई 2022 में फ्रांस के पेरिस में स्थित म्यूजियम में ये कम्पोजिशन प्रस्तुत की जाएगी।
उपलब्धियां
1. श्यामा प्रसाद मुखर्जी कला सम्मान 2012
2. भास्कर वूमन ऑफ़ द ईयर 2011
3. सुर-मणि उपाधि सुर-सिंगार संसद द्वारा 1992
4. साउथ सेन्ट्रल ज़ोन कल्चरल अवार्ड 1990
लेखक सुप्रसिद्ध साहित्यकार हैं।
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