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शिक्षिका ने पेश की नजीर
बच्चे स्कूल में धूप में बैठकर करते थे भोजन
रिटायरमेंट से पहले अपनी जमा पूंजी से विद्यार्थियों के लिए बनवा दिया भोजन कक्ष
भोपाल. शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की शिक्षिका ने समाजसेवा की ऐसी मिसाल पेश की है, जो सराहनीय तो है ही, अनुकरणीय भी है. राजधानी के बावड़िया
कला स्थित शासकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की शिक्षिका द्रोपदी चौकसे को स्कूल के बच्चों को धूप में बैठकर भोजन करते देखना, इतना द्रवित कर गया कि
उन्होंने अपनी जीवन भर की जमा पूंजी से इस सरकारी स्कूल में बच्चों के लिए भोजन कक्ष का निर्माण करवा दिया.
सरकार की मध्यान्ह भोजन व्यवस्था इनके विद्यालय में भी चलती है. शिक्षिका द्रोपदी चौकसे बताती हैं, मैंने कई बार देखा और महसूस किया कि बच्चे खाना खाने में परेशान होते हैं, कभी बाहर तेज धूप में मैदान में बैठते तो बारिश में कक्षाओं के सामने. धूप के कारण कई बच्चे ठीक से भोजन भी नहीं खा पाते थे. स्कूल का यह दृश्य देखकर वे बहुत दुखी हो जातीं और उनके आंसू छलक पड़ते थे.
जब यह बात उन्होंने अपने पति और बेटे को बताई, तब सभी ने स्कूल में एक शेड का निर्माण करवाने का विचार किया, लेकिन द्रोपदी ने इससे एक कदम आगे की सोचते हुए निर्णय लिया कि इन बच्चों के लिए एक पक्का हॉल बना दिया जाए. उनके इस निर्णय पर बेटे और पति ने भी मोहर लगा दी. फिर क्या था, इन्होंने स्कूल की प्राचार्य गीता वर्मा से बात की और अपनी जिंदगी की जमा पूंजी 12 लाख रुपए हॉल बनाने के लिए स्कूल प्रबंधन को दे दी. इस तरह 8 महीने में 1100 स्क्वायर फीट का भोजन कक्ष बनकर तैयार हो गया.
द्रोपदी कहती हैं आज मैं बहुत खुश हूं कि मैं बच्चों के काम आ सकी. अब बच्चों को भोजन करने के लिए परेशान नहीं होना पड़ेगा. अभी कोरोना के कारण मध्यान्ह भोजन व्यवस्था बंद है, लेकिन अप्रैल में जब नया सत्र शुरू होगा, तो मेरी इच्छा है मैं अपने हाथ से इन बच्चों को भोजन परोसूं और उन्हें सुकून से भोजन खाते हुए देख सकूं.
बेहतर हो कि द्रोपदी चौकसे की तरह ही समाज का संपन्न तबका इस तरह के कार्य करने के लिए सामने आकर समाज की तस्वीर बदलने के लिए हाथ बढ़ाए, निश्चित ही समाज की दशा और दिशा दोनों बदलेंगी.
संपादन -मीडियाटिक
स्रोत- दैनिक भास्कर
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