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अतीतगाथा
भोपाल की नवाब बेगमें
शाहजहां बेगम (1868 -1901)
• डॉ. शम्भुदयाल गुरु
सिकन्दर बेगम के निधन के बाद पुत्री शाहजहां बेगम भोपाल रियासत की नवाब बनी। 16 नवम्बर 1868 को मोतीमहल में आयोजित एक दरबार में उन्होंने प्रशासन का कार्यभार ग्रहण किया। उसी दरबार में उनकी पुत्री सुल्तान जहां को उनका उत्तराधिकारी घोषित किया गया। सुल्तानजहां की उम्र तब दस वर्ष थी। इस संबंध में वाइसराय की घोषणा गवर्नर जनरल के एजेंट कर्नल मीड ने पढ़कर सुनाई थी। शाहजहां बेगम का विवाह उनकी माता ने जुलाई 1853 में रियासत के सेनापति बख्शी बकी मोहम्मद खान से कर दिया था। लेकिन दुर्भाय से शाहजाहं बेगम के गद्दीनशीन होने से पहले ही उनकी मृत्यु हो गयी थी। शाहजहां ने अपने व्यक्तिगत दुख को दरकिनार कर अपने आपको प्रशासन के कार्य में झोंक दिया। वे एक योग्य शासक सिद्ध हुई। प्रारंभिक वर्षों में अनेक क्षेत्रों में सुधार करके उन्होंने कुशलता का परिचय दे दिया। उन्होंने देखा कि रियासत पर बड़ी मात्रा में कर्ज चढ़ा हुआ है। आय बढ़ाकर उन्होंने किश्तों में कर्ज अदायगी कर दी। अनाज मंहगा हो गया था, जिससे जनता परेशान थी। शाहजहां बेगम ने अनाज पर लगने वाला कर 1869 में समाप्त कर दिया। इससे रियाया को बड़ी राहत मिली।
बड़े पैमाने पर सुधार
उन्होंने राज्य के विभिन्न क्षेत्रों का दौरा किया, जनता से रुबरू होकर उनकी समस्याएं सुनीं और भरसक उन्हें हल किया। जिन अधिकारियों के विरूद्ध भष्टाचार तथा ज्यादतियों की शिकायतें मिलीं उनको दण्डित किया। उन्होंने जमीन को छ: मुख्य वर्गों में बांट दिया। इनमें तीन सिंचित भूमि के थे और तीन असिंचित भूमि के। भूमि के प्रकार के हिसाब से राजस्व निश्चित किया। सिकन्दर बेगम के समय पुराना जरीब सर्वे हुआ था, उसके स्थान पर राजस्व के लिए पूरी रियासत का समतल टेबिल सर्वे किया गया। यह वैज्ञानिक ढंग से, सर्वे ऑफ इण्डिया से कराया गया था। कर वसूली को चुस्त दुरूस्त करके आय बढ़ाई। घुड़सवार सैनिकों के वेतन में वृद्धि की और पुलिस तथा डाक विभाग का आधुनिकीकरण किया।
ब्रिटिश सरकार से भोपाल के सम्बंध अच्छे बनाये रखने की उन्होंने पूरी कोशिश की। 1869 में ड्यूक ऑफ एडिनबरा के सम्मान में कलकत्ता में वाईसरॉय ने जो दरबार आयोजित किया उसमें शाहजहां शामिल हुई। उनके सुधारों और शायद स्वामी भक्ति प्रकट करने के लिए ब्रिटिश सरकार से उन्हें ग्रेंड कमांडर ऑफ स्टार ऑफ इण्डिया के खिताब से विभूषित किया। 1877 में दिल्ली में भी उन्हें सम्मानित किया गया। सन् 1871 में परिवार की सहमति और ब्रिटिश सरकार की अनुमति से शाहजहां ने सिद्दीक हसन खान से दोबारा शादी कर ली। 17 साल तक सिद्दीक हसन रियासत की सेवा में थे। पहले उन्हें नवाब का ट्यूटर नियुक्त किया गया था। सिद्दीक बुद्धिमान धार्मिक पुस्तकों के लेखक और प्रशासन में योग्यता के कारण प्रसिद्धि पा चुके थे। उन्हें नवाब की उपाधि और 17 तोपों की सलामी प्रदान की गयी। लेकिन उन्होंने राज-काज में अपनी दखलंदाजी बहुत बढ़ा ली थी। शायद उनके व्यवहार के कारण ही शाहजहां और उनकी बेटी सुल्तान जहां के बीच मतभेद और तनाव बढऩे लगा। लेकिन सिद्दीक की भावनाएं अंग्रेजी शासन के विरुद्ध थीं, इससे अंग्रेज उनसे नाराज हो गये और उनकी उपाधियां-सुविधाएं छीन ली गयी। नवाब इससे नाराज हो गयीं। 1885 से 1890 के बीच उन्होंने सिद्दीक हसन के विरुद्ध निर्णय को बदलवाने की लगातार कोशिश की। 1891 में पति की मृत्यु के बाद वे खिताब वापस दिलाने में सफल हुईं।
भोपाल–होशंगाबाद–उज्जैन रेलमार्ग
शाहजहां बेगम के शासन काल की एक उल्लेखनीय उपलब्धि है- पहले इटारसी से भोपाल तक रेल मार्ग का निर्माण। इसके लिए उन्होंने राज्य की ओर से 25 लाख रूपये ओर कुदसिया बेगम की ओर से दस लाख रूपये दिये थे। इस बारे में 1880 में ब्रिटिश सरकार से एक समझौता किया गया था। इसी प्रकार उज्जैन तक रेलमार्ग के निर्माण के लिए 1891 में भी शाहजहां बेगम ने एक समझौता किया था।
भवन निर्माता
नवाब शाहजहां बेगम एक प्रसिद्ध भवन निर्माता थीं। 1887 में दिल्ली की जामा मस्जिद के नमूने पर उन्होंने ताजुल मसाजिद का निर्माण शुरु कराया। यह भारत की सबसे बड़ी मस्जिद है। परंतु 16 जून, 1901 को शाहजहां बेगम का निधन हो गया इसलिए उसका निर्माण अधूरा रह गया। सत्तर साल के बाद 1971 में उसका निर्माण फिर शुरू हुआ और पूरा हुआ। इसके सिवाय उन्होंने बारा महल, लाल कोठी (अब राज भवन) सिकन्दरी सराय, बेनजीर भवन, अली मंजिल आदि का निर्माण कराया। अपने निवास के लिए भव्य ताज महल उन्हीं ने बनवाया।
सामाजिक सुधार
वे सामाजिक सुधारों के लिए भी प्रसिद्ध थीं। बड़ी संख्या में मदरसे खोले गये। 1870 में एक सह शिक्षा का स्कूल शुरू किया। इसमें लड़के -लड़कियां साथ पढ़ते थे। उसी साल भोपाल में पहला अस्पताल खोला। फिर 1891 में महिलाओं के लिए लेडी लेन्सडाउन अस्पताल खोला जो अब सुल्तानिया जनाना अस्पताल कहलाता है।
लेखक जाने माने इतिहासकार हैं।
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