
छाया: शम्पा शाह के एफ़बी अकाउंट से
सृजन क्षेत्र
सिरेमिक एवं मूर्ति कला
प्रमुख कलाकार
शम्पा शाह
सिरेमिक आर्ट सुविख्यात कलाकार शम्पा शाह का जन्म मुंबई में 2 अप्रैल 66 में उनके नाना के घर हुआ था। यद्यपि शम्पा जी ननिहाल मंदसौर में है, उनके नाना जाने माने पत्रकार वीरेंद्र जैन, अपने समय की लोकप्रिय पत्रिका धर्मयुग के संपादक थे और मुंबई (बम्बई) में रहते थे। शम्पा जी का जिस परिवार में हुआ उसे सृजन की दृष्टि से ख़ास कहा जा सकता है। उनके पिता रमेश चन्द्र शाह कॉलेज में प्राध्यापक एवं चर्चित साहित्यकार थे और माँ ज्योत्स्ना मिलन भी साहित्य के क्षेत्र में प्रतिष्ठा अर्जित कर चुकी थीं।
शम्पा जी के परिवार का माहौल आम परिवारों से बिलकुल अलग सा था। हर कमरे में राइटिंग टेबल और किताबें होती। हर सदस्य की अपनी एक दुनिया थी जो एक दूजे के साथ साझा तो करते थे परन्तु दखल नहीं देते थे। शम्पा जी खुद बचपन में ज्यादा से ज्यादा घर से गायब रहना पसंद करती थीं, उनका भी अपना अलग कल्पना लोक था। हालाँकि उनकी दिनचर्या में कुछ ऐसी चीजें शामिल थीं, जो उन्हें एक दूसरे के साथ मजबूती से जोड़ती थी। जैसे रोज़ शाम की लम्बी सैर, जिसमें परिवार के सभी सदस्य एक साथ जाते और दोपहर या रात के भोजन के बाद पिता रमेश जी कहानी सुनाते। बचपन का एक दौर वह रहा जिसमें हर सप्ताह घर में संगीत की बैठक होती। इनमें लोक और शास्त्रीय दोनों प्रकार का गायन होता। एक बार एक पड़ोसी ने शम्पा जी से पूछा था – तुम्हारे यहाँ से क्या आ-आ-आ की आवाज़ आती है, क्या अलापते है? इसमें क्या मज़ा आता है? उन्होंने अपनी माँ से पूछा कि लोग ऐसा क्यों कहते हैं? उन्होंने जवाब दिया कि किसी चीज को समझने के लिए उसमें मन लगाना पड़ता है, उसमें डूबना पड़ता है। उस समय शम्पा जी का परिवार सीधी में रहता था और उनकी उम्र 5-6 वर्ष रही होगी।
शम्पा जी की प्रारंभिक शिक्षा मध्यप्रदेश के पन्ना शहर में हुई, बाद में उनका परिवार भोपाल आ गया। संगीत बैठकों का स्थान कला परिषद और भारत भवन के आयोजनों ने ले लिया। एक निजी स्कूल से हायर सेकेण्डरी करने के बाद शम्पा जी ने विज्ञान विषय लेकर शासकीय महारानी लक्ष्मी बाई कन्या महाविद्यालय से स्नातक एवं शासकीय मोतीलाल विज्ञान महाविद्यालय, भोपाल से स्नातकोत्तर की उपाधि हासिल की। इसी बीच भारत भवन ने सिरेमिक आर्ट के लिए आवेदन आमंत्रित किये। उनके पिता फॉर्म लेकर घर आये लेकिन शम्पा जी ने कह दिया मैं तो विज्ञान की छात्रा हूँ, मुझमें कला की समझ नहीं है। लेकिन उनकी माँ ने उन्हें समझाया कि कई बार हमें खुद पता नहीं होता कि हमारे भीतर क्या है। एक बार जाकर देख लेने में क्या हर्ज है। माँ की बात मानकर शम्पा जी अपनी कुछ सहेलियों के साथ भारत भवन चली गईं। उस समय विख्यात कलाकार पी.आर. दरोज़ सिरेमिक आर्ट के इंचार्ज हुआ करते थे। शम्पा जी को वहाँ मिट्टी देकर बिठा दिया गया और वे उसमें खो गईं। शम्पा जी कहती हैं कि लड़कियाँ किसी भी परिस्थिति में यह नहीं भूलती हैं कि वे कहाँ हैं और घर कब लौटना है। अचानक श्री दरोज़ ने पूछा – मिट्टी से कुछ गपशप हुई? तब जाकर उन्हें यह ख्याल आया कि डेढ़ घंटे हो चुके हैं और रात हो चली है। पहले ही दिन मिट्टी से हुई दोस्ती दिन प्रति दिन प्रगाढ़ होती चली गयी। इसका सिला उन्हें भारत भवन द्वारा सिरेमिक के लिए वर्ष 1988-89 में छात्रवृत्ति की शक्ल में मिला।
वर्ष 1989 से लेकर 92 तक शम्पा जी ने स्वतंत्र कलाकार के रूप में काम किया। इस दौरान( 1996-97) उन्हें मानव संसाधन मंत्रालय, भारत सरकार से जूनियर नेशनल फ़ेलोशिप भी प्राप्त हुई। वर्ष 1992 में वह राष्ट्रीय मानव संग्रहालय, भोपाल में म्यूजियम एसोसिएट और ‘मिथक वीथी’ मुक्ताकाश प्रदर्शनी की प्रभारी बन गयीं। वर्ष 2013 में उन्होंने मानव संग्रहालय की नौकरी छोड़ दी और स्वतंत्र रूप से फिर काम करने लगीं। शम्पा जी कृतियाँ देश की प्रमुख कला दीर्घाओं के साथ-साथ जापान, कोरिया, इंग्लैंड, मिस्त्र और सिंगापुर की कला दीर्घाओं में भी प्रदर्शित हो चुकी हैं। समय के साथ-साथ कला भी परिपक्व होती चली गयी, परिणामस्वरूप कई महत्वपूर्ण संस्थाओं द्वारा उन्हें पुरस्कार और सम्मान से नवाजा गया। जैसे -ऑल इण्डिया फ़ाइन आर्ट्स एंड क्राफ़्ट सोसाइटी द्वारा वर्ष 1989, 1992 एवं 1994 का बेस्ट पॉटर ऑफ़ द ईयर अवॉर्ड, नेशनल एग्जीबिशन ऑफ़ आर्ट, साउथ सेंट्रल ज़ोन नागपुर द्वारा 1998 का सर्टिफ़िकेट ऑफ़ मेरिट आदि। वर्तमान में शम्पा शाह अपने लेखक-पत्रकार पति ईश्वर सिंह दोस्त और बेटे के साथ भोपाल में निवास कर रही हैं। वे प्रदेश की चुनिंदा सिरेमिक कलाकारों में से एक हैं।
संदर्भ स्रोत – स्व संप्रेषित एवं शम्पा जी से बातचीत पर आधारित
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