
छाया : राजशेखर परमेश्वरन
अतीतगाथा
मध्यप्रदेश के इतिहास में महिलाएं
वासवदत्ता
• डॉ. शम्भुदयाल गुरु
वासवदत्ता अवन्ति महाजनपद के शासक चण्डप्रद्योत महासेन की पुत्री थी। अवन्ति की राजधानी उज्जैन थी। प्रद्योत का जन्म उसी दिन माना जाता है जिस दिन गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था। अवन्ति की सीमा से लगे वत्स महाजनपद में शतानीक राज्य कर रहा था। उसकी राजधानी इलाहाबाद के निकट कौशाम्बी थी। शतानीक की पत्नी मृगावती ने एक सुन्दर बालक को जन्म दिया जिसका नाम उदयन रखा गया। उदयन ने अपनी किशोर अवस्था में पास ही स्थित नागों की बस्ती में वीणा वादन सीखा। वीणा वादन में वह इतना पारंगत हो गया कि उसकी इस कला की ख्याति दूर-दूर तक फैल गयी।
चण्डप्रद्योत ने वत्स राज्य को अपने साम्राज्य में मिलने के लिए वत्स पर कई आक्रमण किए। परंतु वह अपने मनोरथ में सफल नहीं हुआ। जैन अनुश्रुति के अनुसार महारानी मृगावती के सौंदर्य से मोहित होकर ही प्रद्योत ने कौशाम्बी पर आक्रमण किया था। महाराजा शतानीक बीमार थे। अत: रक्षा का दायित्व मृगावती ने सम्हाला। इसी बीच शतानीक की मृत्यु हो गयी। मृगावती ने कूटनीतिक चाल चली। उसने प्रद्योत को संदेश भेजा कि उदयन बालक है। इसलिए यदि प्रद्योत अच्छा दुर्ग बनवा दे और सेना संगठित कर दे तो वह उसके साथ उज्जयिनी चली जायेगी। प्रद्योत प्रलोभन में फंस गया। अनुश्रुति हैं, कि उसने दोनों कार्य संपन्न करवा दिये। लेकिन मृगावती उज्जयिनी नहीं गयी। विवश होकर प्रद्योत को सन्धि करना पड़ी। कौशाम्बी में उदयन का राज्याभिषेक किया गया।
यद्यपि चण्डप्रद्योत वत्स को अपने राज्य में नहीं मिला सका, तथापि वह अपनी पुत्री वासवदत्ता का विवाह उदयन के साथ करने का इच्छुक था। वत्स तथा अवन्ति के बीच दशार्ण का घनघोर वन था, जहां हाथी पाये जाते थे। उदयन हाथी पकडऩे के लिए दशार्ण आता था। उसने वासवदत्ता के सौन्दर्य की ख्याति सुन रखी थी। अत: इसलिए भी वह अवन्ति से सम्बंध सुधारना चाहता था। अब प्रद्योत ने भी एक चाल चली। उसने अवन्ति की सीमा पर लकड़ी का एक हाथी बनवाकर रख दिया। उसमें सैनिक छिपाकर रख दिये। उदयन जैसे ही हाथी के भ्रम में अवन्ति की सीमा में आया, बन्दी बना लिया गया।
उदयन–वासवदत्ता
प्रद्योत ने उदयन का सत्कार किया और उससे वासवदत्ता को वीणावादन की शिक्षा देने का आग्रह किया। प्रतीत होता है कि वह उदयन को घर जमाई बनाकर उज्जयिनी में रखना चाहता था। ताकि वत्स का साम्राज्य जो वह युद्ध में नहीं जीत सका था, सहज ही उसके राज्य का हिस्सा बन जाये। बौद्ध अनुश्रुति में उदयन वासवदत्ता के गुरू शिष्य संबंध के बारे में एक रोचक कथा है। महावम्ग में लिखा है कि प्रद्योत ने उदयन को इस शर्त पर छोडऩे का प्रस्ताव रखा कि पहले वह वासवदत्ता को वीणा वादन में पारंगत कर दे। वीणा वादन सिखाते समय दोनों के बीच एक पर्दा पड़ा होता था। एक दिन पर्दा खुल गया तो दोनों एक दूसरे पर न्यौछावर हो गये। फिर दोनों उज्जयिनी से भाग गये।
कथा-सरित सागर में दूसरी ही कथा है। उदयन नित्य गायन वादन सिखाते और वहीं गन्धर्वशाला में वासवदत्ता के मोहपाश में जकड़े पड़े रहते। वासवदत्ता उनकी सुख सुविधा का पूरा ध्यान रखती, परंतु वह उन्हें बंधन से मुक्त नहीं करा सकी। कौशाम्बी में उदयन को मुक्त कराने के लिए एक योजना बनी। वसन्तक और एक और मंत्री चुपचाप उज्जयिनी पहुंच गये। उन्होंने हाथीवान को प्रलोभन देकर उदयन वासवदत्ता को भद्रावती नामक हथिनी पर बैठकर वत्स की और भगा लिया। पीछा करती सेना को वसन्तक ने स्वर्ण मुद्राएं बिखेर कर भरमा दिया। वासवदत्ता का भाई गोपालक फिर कोशाम्बी पहुंचा। उसने अपनी बहिन वासवदत्ता का विवाह उदयन से करा दिया। चण्ड प्रद्योत ने भी कीमती उपहार भेजे।
भास ने स्वप्न वासवदत्तम में वासवदत्ता- उदयन की प्रणय गाथा को अमर कर दिया है। दोनों के उज्जयिनी से भागने की यह कथा कौशाम्बी में हुए उत्खनन में एक ठीकरे पर अंकित मिली है। जिसमें बताया गया है कि दोनों प्रेमी हथिनी पर बैठे भाग रहे हैं और पीछे बैठा वसन्तक स्वर्ण मुद्राएं बिखेर रहा है।
लेखक जाने माने इतिहासकार हैं।
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