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लड़कियों के लिए सही फैसला
हिंदुस्तान में अमूमन लड़कियों को पराए धन की तरह बताया जाता है और बहुत बार उन्हें बोझ माना जाता है। घर की बेटियों की जल्द से जल्द शादी करवाने की कोशिश रहती है, ताकि वो ससुराल जाकर अपना घर संभाले। लेकिन जिस घर में जन्म लिया, वहां से जल्द से जल्द विदा करने की यह रस्म कई बार सामाजिक कुरीतियों को जन्म देती है। इससे लड़कियों की शारीरिक, मानसिक, आर्थिक, सामाजिक स्थिति कई बार प्रभावित होती है। अपने ही परिजनों के अनकहे शोषण का शिकार लड़कियां होती हैं। यह स्थिति बदल सकती है, अगर लड़कियों को पूरी तरह सक्षम और आत्मनिर्भर बनाया जाए। इसलिए देश में कई बार लड़कियों की शादी की सही अवस्था को लेकर विमर्श हुआ। कई कोशिशों के बाद बाल विवाह पर काफी हद तक रोक लगाई गई है। लड़कियों की शादी की उम्र भी 12 की जगह 18 वर्ष की गई और अब इसमें एक बड़ा बदलाव करते हुए मोदी केबिनेट ने बुधवार को फैसला लिया है कि लड़कियों की शादी की उम्र भी लडक़ों के बराबर यानी 21 वर्ष की जाए।
केबिनेट की इस प्रस्ताव के बाद अब लड़कियों की शादी की उम्र में बदलाव के लिए सरकार मौजूदा कानूनों में संशोधन करेगी। गौरतलब है कि पिछले साल 15 अगस्त के मौके पर अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस बात का जिक्र किया था और उम्र को बढ़ाने की बात कही थी। इसके बाद जया जेटली की अध्यक्षता में 10 सदस्यों की टास्क फोर्स का गठन किया गया। इस टास्क फोर्स का गठन ‘मातृत्व की उम्र से संबंधित मामलों, मातृ मृत्यु दर को कम करने की आवश्यकता, पोषण में सुधार से संबंधित मामलों की जांच के लिए किया गया था। रिपोर्ट में जेटली ने कहा है कि हमारी सिफारिश के पीछे का तर्क कभी भी जनसंख्या नियंत्रण का नहीं, बल्कि महिला सशक्तिकरण है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण द्वारा जारी हालिया आंकड़ों ने पहले ही संकेत दिए हैं कि कुल प्रजनन दर घट रही है और जनसंख्या नियंत्रण में है। जया जेटली ने कहा कि हमारी सिफारिश विशेषज्ञों के साथ व्यापक परामर्श के बाद और अधिक महत्वपूर्ण रूप से युवा वयस्कों, विशेष रूप से युवा महिलाओं के साथ चर्चा के बाद हुई। ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि यह फैसला सीधे तौर पर उन्हें प्रभावित करता है। हमें 16 विश्वविद्यालयों से जवाब मिले और युवाओं तक पहुंचने के लिए 15 से अधिक गैरसरकारी संगठनों को शामिल किया गया है। ग्रामीणों के साथ ही पिछड़े वर्ग और सभी धर्मों और शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों से फीडबैक लिया गया। इसमें सामने आया है कि शादी की उम्र 22-23 वर्ष होनी चाहिए।
समिति ने सिफारिश की है कि निर्णय की सामाजिक स्वीकृति को प्रोत्साहित करने के लिए एक व्यापक जन जागरूकता अभियान चलाया जाए। इसके साथ ही शैक्षणिक संस्थानों के मामले में परिवहन सहित लड़कियों के लिए स्कूलों और विश्वविद्यालयों तक पहुंच की भी मांग की है। समिति ने यौन शिक्षा को औपचारिक रूप पढ़ाने और स्कूली पाठ्यक्रम में शामिल करने की मांग की है। पॉलिटेक्निक संस्थानों में महिलाओं के प्रशिक्षण, कौशल और व्यवसाय प्रशिक्षण और आजीविका बढ़ाने की भी सिफारिश की गई है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि विवाह योग्य आयु में वृद्धि को लागू किया जा सके। सिफारिश में कहा गया है कि अगर लड़कियां दिखा दें कि वे आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं, तो माता-पिता उनकी जल्दी शादी करने से पहले दो बार सोचेंगे।
लड़कियों की शादी की सही उम्र और प्रगति के अन्य पहलुओं पर सरकार की यह पहल स्वागत योग्य है और समय के अनुकूल भी है। लड़कियों को उच्च शिक्षा हासिल करने के साथ-साथ अपनी योग्यताओं को विस्तार देने के लिए और अधिक वक्त मिलना चाहिए। जिस तरह लडक़ों को आत्मनिर्भर होना जरूरी माना जाता है, उसी तरह अगर लड़कियों को भी अपने पैरों पर खड़े होने के लिए प्रोत्साहित किया जाए और उन्हें इसके लिए सुविधाएं दी जाएं, तो आगे जाकर कई तरह की तकलीफों से उन्हें बचाया जा सकता है। एक स्वस्थ समाज के लिए भी यह जरूरी है कि लडक़े और लडक़ी में हर तरह से समानता रहे, इस पर केवल जुबानी जमा खर्च न हो।
आजादी के पहले से देश में लड़कियों के उत्थान की कोशिश समाजसुधारकों ने की है। राजा राममोहन राय ने सती प्रथा रुकवाई। ज्योतिबा फुले और सावित्री बाई फुले ने स्त्री शिक्षा को आगे बढ़ाया। राय साहब हरविलास शारदा के प्रयत्नों से 1927 में बाल विवाह रोकने का विधेयक पेश हुआ, जिसमें विवाह के लिए लडक़ों के लिए न्यूनतम उम्र 18 और लड़कियों के लिए 14 साल करने का प्रस्ताव रखा गया और साल 1929 में यह कानून बना। इससे पहले लड़कियों की शादी की उम्र 12 साल मानी जाती थी। शारदा एक्ट बना तो बाल विवाह रोकने में मदद मिली, इसके बाद इस कानून में कई संशोधन हुए। आजादी के बाद साल 1978 में लडक़ों के लिए शादी की न्यूनतम उम्र 21 साल और लड़कियों के लिए 18 साल कर दी गई। हालांकि, इस वक्त तक इस खास ध्यान नहीं दिया जाता था और ना ही ज्यादा सजा आदि का प्रावधान था। साल 2006 में इसकी जगह बाल विवाह रोकथाम कानून लाया गया, इसके तहत लडक़े और लड़कियों की शादी की न्यूनतम आयु को तय किया गया है। इसके बाद से इससे कम उम्र में शादी करना गैर-कानूनी माना गया है और सजा के साथ जुर्माने के भी प्रावधान है। अब देखना होगा कि मोदी सरकार लड़कियों की शादी की उम्र में संशोधन के कानून में किस तरह के प्रावधान रखती है। यह कानून तभी प्रभावकारी साबित होगा, जब रूढि़वादी सोच को छोडक़र लड़कियों के विकास के लिए खुले मन से समाज इसे स्वीकार करेगा।
सन्दर्भ स्रोत: देशबन्धु में 17 दिसम्बर को प्रकाशित सम्पादकीय