
छाया : रजनीश जैन
विकास क्षेत्र
शिक्षा
शिक्षा के लिए समर्पित महिलाएं
यमुना ताई शेवड़े
• रजनीश जैन,सागर
सागर की स्व. यमुना ताई शेवड़े (ठाकुर) को महिला शिक्षा की हरि सिंह गौर कहा जा सकता है। वर्ष 1922 में जब बेटियों को स्कूल भेजना इस इलाके में तकरीबन असामाजिक कर्म माना जाता था यमुना ताई ने सागर में महिला विद्यालय खोल दिया था। ऐसा करके यमुना ताई अपने पड़ोसी पूर्वज कृष्णाराव रिंगे का सौ साल पुराना इतिहास दोहरा रही थीं। मराठा शासन के सूबेदार रहे विनायक राव के पौत्र कृष्णाराव रिंगे ने सागर शहर में जेम्स पैटन द्वारा स्थापित 9 स्कूलों में से एक खुद के घर में खोली। 1928 में पैटन के जाते ही शहर के आठ स्कूल ठप्प हो गये लेकिन लक्ष्मीपुरा के रिंगेवाड़ा में खुला स्कूल बुलंदियां छूने लगा। इसे देखकर शहर के सभी स्कूल रिंगे जी के सुपुर्द कर दिए गये। बिना सरकारी मदद के रिंगे के इन स्कूलों में 6 सौ छात्र आने लगे। इसकी शोहरत सुनकर भोपाल के नवाब और पालिटिकल एजेंट मैड्आक खुद इनका इंतजाम समझने आए और रिंगे को अपनी रियासत में शिक्षण संस्थाओं की स्थापना हेतु बुलाया। सरकार ने अनुदान शुरू करके तीन सौ रू महीने तक बढ़ा दिया। सागर की स्कूलों की सफलता की कहानियां सुनकर 1933 में गवर्नर जनरल लॉर्ड विलियम बैंटिंग स्वयं रिंगेवाड़ा का स्कूल देखने आ गये। उन्होंने प्रसन्न होकर रिंगे जी को आनरेरी मजिस्ट्रेट का ओहदा तत्काल जारी किया। रिंगेवाड़ा और कचहरी भवन आज भी यमुनाताई के महिला विद्यालय परिसर के बाजू में देखे जा सकते हैं।
38 साल की आयु में यमुनाताई ने लक्ष्मीपुरा के दीक्षित बाड़े में ताई दीक्षित और पलसुले ताई के साथ 6 छात्राओं को लेकर कन्याशाला शुरू कर दी। इनमें से तीन श्रीमती तारा खेर, सुशीला खेर और इंदु जटार उच्च शिक्षा लेकर सागर की पहली डिग्री धारी बेटियां बनीं। खेर परिवार मूलतः सागर के मराठा शासक गोविंद पंत बुंदेले का ही परिवार है। इस कन्या विद्यालय का तेजी से विस्तार हुआ और इसका पाठ्यक्रम पुणे के कर्वे विद्यापीठ से था। मराठी भाषा तब से आज भी प्राइमरी तक पढ़ाई जाती है। जल्दी ही स्कूल भवन के लिए यमुनाताई ने एक एक पैसा दान एकत्रित करना शुरू कर दिया। बैरिस्टर श्रीखंडे ने अपने निवास के बाजू में जगह दे दी। बाद में पूरा निवास ही स्कूल के लिए दे दिया और खुद चकराघाट के बाजू में श्रीखंडे भवन में रहने चले गए। 1936 मे चार्टर्ड इंजीनियर राव साहिब आर आर अभ्यंकर के निर्देशन में स्कूल का आलीशान भवन बना और ‘महिला विद्यालय’ के नाम से इसका उद्घाटन हुआ। विजयाराजे (सिंधिया) और नेपाल पैलेस की उनकी बहिनें घुड़बग्घी और कार से यहां पढ़ने आया करती थीं।
यमुनाताई की जीवटता और संकल्प आज़ादी के आंदोलन में भी दिखा। उन्होंने 7 दिसंबर को भारत छोड़ो आंदोलन में महिलाओं का नेतृत्व करते हुए कचहरी पर तिरंगा फहराने की कोशिश की। डिप्टी कमिश्नर ने पूरे जुलूस को गवर्मेन्ट हाई स्कूल के पास रोक लिया। तनातनी बढ़ती देख यमुनाताई से वार्ता के बाद सेनानियों के जुलूस को अफ़सर ने स्वागत सत्कार के बाद सम्मान पूर्वक विदा किया। कुछ दिन बाद इसी आरोप में ताई को गिरफ़्तार कर एक साल के लिए जेल भेज दिया गया । वहां यह पता चलने पर कि ताई को कैंसर है, उन्हें रिहा कर दिया गया। लेकिन वे कुछ ही दिन जीवित रह सकीं। 31 मार्च, 1943 को अपनी मृत्यु के पहले महिला विद्यालय की अध्यक्षता शहर के विख्यात वकील बिहारीलाल सेठ को उन्होंने सौंपी। यमुनाताई ने अपने परिजनों और दानदाताओं की सौ एकड़ से ज्यादा ज़मीन महिला विद्यालय की आर्थिक आवश्यकताएं पूरी करने लगाई थी। लेकिन आज़ादी के बाद बानी सरकारों ने ताई के इस योगदान को भुला दिया। ज़मीन पर लोभियों का निजी कब्ज़ा हो गया और स्कूल परिसर को मवालियों ने अपना अड्डा बना लिया था। एक दबंग युवा प्राचार्य और सागर मालगुज़ार परिवार की बहू नीरजा दुबे ने स्थानीय भद्र लोगों की मदद से इन समस्याओं को खत्म किया। बीते चार साल में ताई का स्कूल अपने पुराने गौरव को छू रहा है। यह संभवतः बुंदेलखंड का भी पहला कन्या स्कूल है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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