
छाया : स्व संप्रेषित
सृजन क्षेत्र
खेल एवं युवा कल्याण
प्रमुख खिलाड़ी
मेघा परमार
एवरेस्ट की चोटी तक पहुँचने वाली मध्यप्रदेश की पहली महिला पर्वतारोही मेघा परमार भोपाल से 50 किलोमीटर दूर सीहोर जिले के उलझावन गांव के नज़दीक स्थित भोज नगर की रहने वाली हैं। उनका जन्म 18 नवंबर 1994 को हुआ था। मेघा के पिता दामोदार परमार किसान हैं और मां मंजू देवी गृहिणी हैं। चार भाई बहनों में मेघा अपने माता-पिता की तीसरी संतान हैं। बचपन में परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी और लड़की होने के कारण घर से निकलने या घूमने-फिरने की भी इजाज़त नहीं थी। आर्थिक तंगी के कारण उनकी पढ़ाई रुक गई। परिवार के भीतर भी लड़का-लड़की का भेद गहराई तक समाया हुआ था। खाने में हमेशा सूखी रोटी मिलती थी, जबकि भाई को माँ घी लगाकर रोटी देती थी। सवाल पूछने पर जवाब मिलता था कि तू तो पराया धन है, बेटा बड़ा होकर नाम रौशन करेगा। उनकी माँ भी तीजा या रक्षा बंधन जैसे मौके पर ही घर से बाहर निकलती थीं।
12वीं तक मेघा की पढ़ाई मामा के घर हुई थी। उन्हें स्कूल यूनिफार्म पहनना बहुत पसंद था। उनकी सगाई बचपन में ही कर दी गई थी। 12वीं के बाद मामा के घर से लौटने के बाद उनकी शादी हो जाती लेकिन वह कुछ दिनों के लिए टाल दी गई, क्योंकि उनके चार भाई गाँव से दूर सीहोर में रहकर पढ़ाई कर रहे थे। उन्हें खाने-पीने में दिक्कत हो रही थी, इसलिए मेघा को उनका भोजन पकाने के लिए सीहोर भेज दिया गया। सीहोर आना उनके जीवन के लिए निर्णायक मोड़ साबित हुआ। वहाँ उनके घर के पास ही गर्ल्स कॉलेज है, जहाँ उन्होंने स्नातक करने के लिए प्रवेश ले लिया। इस तरह आगे की पढ़ाई के लिए एक दरवाज़ा खुल गया।
सीहोर में मेघा अपने घर के पास बने चांपाकल से हर दिन 14-15 कुप्पी पानी ढोकर लाती थीं। आज वह कहती हैं कि शायद उसी दौरान ईश्वर मुझे एवरेस्ट चढ़ाई के लिए तैयार कर रहे थे। कॉलेज में वह खेल कूद में रूचि लेने लगीं। लगातार तीन सालों तक ‘स्टूडेंट ऑफ़ द ईयर’ खिताब हासिल करने के बाद उनका आत्मविश्वास भी बढ़ने लगा। राष्ट्रीय सेवा योजना के माध्यम से उन्हें सामाजिक सरोकार के कार्यों में भी हिस्सा लेने का अवसर प्राप्त हुआ। उसी के तहत उन्हें कॉलेज की ओर से मालदीव जाने का अवसर मिला, जहाँ उन्होंने अपने देश का प्रतिनिधित्व किया था। इसके बाद वह खेल-कूद प्रतिस्पर्धाओं में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने लगीं और परिणामस्वरूप ट्रॉफ़ी और पुरस्कार भी खूब मिलने लगे। यह सब देख परिवार के लोगों को भी ख़ुशी होती। उनकी तरफ से सारे प्रतिबंध समाप्त हो गए।
स्नातक उपाधि प्राप्त करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए वह ज़िद करके भोपाल आ गईं और बरकतउल्लाह विश्वविद्यालय से एमएसडबल्यू की पढ़ाई के लिए नामांकन करवा लिया। भोपाल में पहले ही दिन उन्होंने दो लड़कों के माउंट एवरेस्ट फ़तह करने की ख़बर पढ़ी। मन ही मन कुछ तय करके उन्होंने घरवालों को मनाया और माउंट क्लाइबिंग की ट्रेनिंग के लिए मनाली चली गईं। प्रशिक्षण से लौटने के बाद समस्या थी 25 लाख के स्पॉन्सररशिप की। इसके लिए उन्होंने एक लिस्ट तैयार की और वल्लभ भवन के चक्कर काटने लगीं। मंत्रियों के दफ़्तर के सामने हर दिन अपनी फ़ाइल लेकर खड़ी हो जातीं। एक बार एक अधिकारी की उन पर नज़र पड़ी, उनके पूछने पर मेघा ने बताया कि मैं माउंट एवरेस्ट चढ़ना चाहती हूँ । यह सुनकर वे अधिकारी महोदय भी हैरान रह गए और उन्होंने मदद की, इसके अलावा कुछ कम्पनियां भी स्पॉन्सररशिप के लिए तैयार हो गईं।
पहली बार जब उन्होंने पर्वत पर चढ़ाई शुरू की तो कुछ दूर चलने के बाद वे 10 फ़ीट की ऊंचाई से एक ठोस पत्थर पर गिरीं, उनके शरीर में तीन जगह फ़्रैक्चर हो गया। लगभग 3 महीने तक मेघा घर पर बिस्तर पर पड़ी रहीं। उनके पिता पर्वतारोहण छोड़ शादी करने के लिए दवाब बनाने लगे लेकिन मेघा को यह गवारा नहीं था| इस मामले में उनके कोच ने उनका पूरा साथ दिया और पिता को यह कहकर मनाया कि उन्हें मेघा पर विश्वास है कि वो ऊंचा मुकाम ज़रूर हासिल करेगी। इसी बीच उनकी एक स्कूल में सरकारी नौकरी लग गई। लेकिन उनके कोच ने उन्हें लक्ष्य से कभी भटकने नहीं दिया। वे सुबह 4:00 बजे से ही लगभग 5 घंटे और शाम 4 घंटे का नियमित अभ्यास करती थी।
तीन साल के कड़े प्रशिक्षण के बाद एवरेस्ट फ़तह की पहली कोशिश उन्होंने मई 2018 में की। उस समय तबियत बिगड़ जाने और खराब मौसम के कारण 748 मीटर से पहले ही वह नीचे उतर आई थीं। इस घटना के ठीक एक साल बाद उन्होंने फिर प्रयास किया। एवरेस्ट पर चढ़ने की शुरुआत 18 मई को रात में कैंप नंबर 2 से की गई थी। बर्फ से ढंकी पहाड़ियों पर रात भर चढ़ाई कर वो सुबह कैंप नंबर 3 पहुँचीं । 22 मई 2019 की सुबह उन्होंने शिखर पर तिरंगा लहरा दिया। यह एक संयोग था कि जब वे एवरेस्ट से लौट रही थीं तो रास्ते में उन्हें भावना डेहरिया भी मिलीं जो उनके 4 घंटे बाद एवरेस्ट की चोटी पर पहुंची थीं। मेघा इस तरह माउंट एवरेस्ट फ़तह करने वाली मध्यप्रदेश की पहली महिला बन गईं। इतना ही नहीं, माउंट एल्ब्रस(रूस), माउंट किलीमंजारो (तंज़ानिया) और माउंट कोस्सिउस्ज्को (आस्ट्रेलिया) फ़तह करने वाली मध्यप्रदेश की पहली महिला होने का श्रेय भी उनके ही खाते में है।
वर्तमान में मेघा योग में पी.एच.डी. कर रही हैं। उनका मकसद सातों महाद्वीप के सर्वाधिक ऊँची चोटियों पर पहुँचना है। उन्हें प्रदेश सरकार द्वारा ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान की ब्रांड एम्बेसडर बनाना भी अत्यंत तर्कसंगत प्रतीत होता है। इसके अलावा वे मतदाता जागरूकता अभियान की भी ब्रांड एम्बेसडर हैं। वे आज भी कठोर प्रशिक्षण ले रही हैं ताकि अपने मकसद में कामयाब हो सकें।
संदर्भ स्रोत – स्व संप्रेषित एवं मेघा जी से बातचीत पर आधारित
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