
छाया : पोशमपा डॉट ओआरजी
प्रेरणा पुंज
विशिष्ट महिलाएं
मन्नू भंडारी
मन्नू भण्डारी हिन्दी की सुविख्यात बहुपठित अत्यंत महत्वपूर्ण और बहुत सारी भाषाओं की रचनाकार थीं। जीवन जीने, उसे संभालने और संजोने की उनकी क्षमता और उनका बेहद निजी तौर तरीका आज की पीढ़ी के लिए एक मिसाल बन सकता है। उनका जन्म 3 अप्रैल,1931 को मध्य प्रदेश के भानपुरा गांव, जिला मंदसौर में हुआ। लेकिन कार्यक्षेत्र कलकत्ता और नई दिल्ली रहे। उनके बचपन का नाम महेंद्र कुमारी था, लेखन के लिए उन्होंने मन्नू नाम का चुनाव किया। 1949 में स्नातक की पढ़ाई कलकत्ता विश्वविद्यालय से करने के बाद आगे की पढ़ाई के लिए वह वाराणसी आ गईं और यहीं काशी हिन्दू विश्वविद्यालय से 1952 में एम. ए. की उपाधि हासिल की।
बालीगंज सदन, कोलकाता (1952-1961) से उन्होंने अध्यापन कार्य शुरू किया। तत्पश्चात रानी बिड़ला कॉलेज, कोलकाता (1961-64) में अध्यापन कार्य के बाद सन् 1964 में वे मिरांडा कॉलेज, नई दिल्ली में हिन्दी की प्राध्यापक बनी और अवकाश प्राप्त करने (1991) तक कार्यरत रहीं। अवकाश प्राप्त करने के उपरांत 1992-94 तक वे उज्जैन में प्रेमचंद सृजनपीठ की निदेशक रहीं। ख्यात, कथाकार राजेन्द्र यादव से उनका से प्रेम विवाह हुआ। विवाह के पैंतीस साल बाद 1994 में राजेंद्र जी से अलग होने के बाद ही उन्होंने अपने लिए जीना सीखा। जिंदगी के कड़वे अनुभवों और अपने निर्णय पर डटे रहने की मिसाल मन्नू जी का अकेलापन उनका अपना चुनाव है। उनका मानना है, कि जब किसी के साथ रहते हुए भी अकेले ही जीना हो, तो उस साथ के होने का भरम टूट जाना ही अच्छा है।
कलात्मकता उनके समूचे व्यक्तित्व से लेकर उनके लेखन तक में व्याप्त थी। अजमेर के ठेठ मारवाड़ी और संबंधों में निष्ठा रखने वाले संयुक्त परिवार जहां लड़कियों का नौकरी करना तौहीन समझी जाती थी, वहां मन्नू जी ने स्कूल में नौकरी कर पहली सीमा लांघी। मन्नू जी अपनी हर रचनाओं में किसी न किसी रूप में उपस्थित रहती हैं। कभी विचारों, मान्यताओं और पक्षधरता के स्तर पर तो कभी भावना और संवेदना के स्तर पर। ‘आपका बंटी’ उपन्यास में वह बताती है कि एक औरत जब अपनी अस्मिता का संधान करने लगती है, तो सक्षम भी हो जाती है और यही बात पुरुष के लिए चुनौती बन जाती है और तभी दाम्पत्य संबंधों में तनाव पैदा होता है, जो अलगाव तक पहुंच जाता है, इस तनाव और अलगाव की त्रासदी में पिसते हैं निर्दोष बच्चे…।
‘एक इंच मुस्कान’ और ‘आपका बंटी’ जैसे संवेदनशील उपन्यास की लेखिका मन्नू भंडारी न तो अपने जीवन में और न लेखन में कोई विशेष राजनीतिक रुझान रखती थीं , लेकिन शासन व्यवस्था के दोहरे चरित्र ने उन जैसी मानवीय संवेदना रखने वाली लेखिका को सृजनात्मक रूप से इतना विचलित किया कि उन्होंने इसी मन से ‘महाभोज’ जैसे उपन्यास की रचना कर डाली, जिसे राजनीतिक उपन्यास माना जाने लगा। मन्नू जी विजुअल मीडिया की भी गहरी समझ रखती थीं ।
बहुमुखी प्रतिभा की धनी मन्नू भंडारी ने कहानियां, उपन्यास, पटकथा, नाटक लिखे हैं। उनकी कहानियां कई भारतीय भाषाओं में अनुदित हुई। लेखन का संस्कार उन्हें विरासत में मिला। उनके पिता सुख सम्पत राय भी जाने माने लेखक थे। उनकी रचनाओं में ‘एक प्लेट सैलाब’ (1962),‘मैं हार गई’ (1957), ‘तीन निगाहों की एक तस्वीर’, ‘यही सच है’ (1966), ‘त्रिशंकु’ और ‘आंखों देखा झूठ’ उनके महत्वपूर्ण कहानी संग्रह हैं। विवाह विच्छेद की त्रासदी में पिस रहे एक बच्चे को केन्द्र में रखकर लिखा गया उनका उपन्यास ‘आपका बंटी’ (1971) हिन्दी के सफलतम उपन्यासों में गिना जाता है।
नौकरशाही में व्याप्त भ्रष्टाचार और दोहरे चरित्र वाली राजनीति के बीच आम आदमी की पीड़ा को गहराई को उद्घाटित करने वाले उनके उपन्यास ‘महाभोज’ (1979) पर आधारित नाटक अत्यधिक लोकप्रिय हुआ था। इसी प्रकार ‘यही सच है’ पर आधारित ‘रजनीगंधा’ नामक फिल्म अत्यंत लोकप्रिय हुई थी और इसे 1974 की सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार भी प्राप्त हुआ था। उनकी रचनाधर्मिता का सम्मान करते हुए हिन्दी अकादमी, दिल्ली ने उन्हें शिखर सम्मान और मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने भवभूति अलंकरण प्रदान किया। बिहार सरकार, भारतीय भाषा परिषद, कोलकाता, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी, बिरला व्यास सम्मान (2008) और उत्तर-प्रदेश हिंदी संस्थान ने भी उन्हें पुरस्कृत किया।
उपलब्धियां :
1.उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान- महाभोज पर, 80-81
2.भारतीय भाषा परिषद, कलकत्ता – 1982
3.कला-कुंज सम्मान, दिल्ली- 1982
4.भारतीय संस्कृति संसद कथा समारोह, कलकत्ता- 1983
5.बिहार राज्य भाषा परिषद- 1991
6.राजस्थान संगीत नाटक अकादमी- 2001-2002
7.महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी- 2004
8.हिन्दी अकादमी, दिल्ली शलाका सम्मान- 2006-07
9.मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन- भवभूति अलंकरण- 2006-07
10.व्यास सम्मान: 2008
प्रकाशित कृतियाँ
कहानी संग्रह : एक प्लेट सैलाब, मैं हार गई, तीन निगाहों की एक तस्वीर, यही सच है, त्रिशंकु, श्रेष्ठ कहानियाँ, आँखों देखा झूठ, नायक खलनायक विदूषक।
उपन्यास : आपका बंटी, महाभोज, स्वामी, एक इंच मुस्कान और कलवा, फिल्म पटकथाएँ : रजनीगंधा, निर्मला, स्वामी, दर्पण।
नाटक : बिना दीवारों का घर(1966), महाभोज का नाट्य रूपान्तरण (1983)
आत्मकथा: एक कहानी यह भी (2007)
प्रौढ़ शिक्षा के लिए: सवा सेर गेहूं (1993) ( प्रेमचन्द की कहानी का रूपान्तरण )
विदेश यात्राएं :
- नवम्बर,1984 में कोलोन (जर्मनी) द्वारा आयोजित तीन दिवसीय सेमिनार ‘प्राब्लम्स ऑफ वुमेन राइटर्स’ में भारत का प्रतिनिधित्व
- कोलोन, ब्रसल्स, विएना, पेरिस और लंदन में निकोल बरवीर द्वारा आयोजित गोष्ठियों में भागीदारी
- लंदन में विलियम-ऐश का निमंत्रण
- फ्रैंकफर्ट में भारतीय साहित्य पर केन्द्रित पुस्तक प्रदर्शनी में निमंत्रित एवं भागीदारी
15 नवम्बर, 2021 को गुड़गॉंव के एक अस्पताल में उनका देहांत हो गया।
संदर्भ स्रोत – मध्यप्रदेश महिला संदर्भ
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