
छाया : फ्री प्रेस जर्नल
प्रेरणा पुंज
अपने क्षेत्र की पहली महिला
मध्यप्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री उमा भारती
जिन चतुर चालाक राजनीतिज्ञ दिग्विजय सिंह को और कोई नहीं, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे विराट व्यक्तित्व ने ही ‘सव्यसाची’ की उपमा दी थी और जिनकी तुलना ज्योति बसु जैसे नेता से की जाती थी ,उन्हीं दिग्विजय को बुंदेलखण्ड जैसे निहायत ही पिछड़े इलाके के एक गांव से ताल्लुक रखने वाली एक भगवाधारी सन्यासिन सत्ताच्युत कर देगी, इसकी कल्पना राजनीति के बड़े-बड़े पण्डितों ने भी नहीं की थी । दरअसल, मध्यप्रदेश में लगातार 10 साल पुरानी दिग्विजय सरकार को बिजली, पानी और सडक़ के मुद्दे पर बाहर का रास्ता दिखाने का श्रेय उमा भारती को ही जाता है। हालांकि राजनीतिक विश्लेषक श्री सिंह के अंहकार और उनकी सरकार की नाकामियों को इसके लिए ज़िम्मेदार बताते हैं।
3 मई, 1959 अक्षय तृतीया के दिन टीकमगढ़ ज़िले के डूण्डा गांव के एक लोधी किसान परिवार में जन्मी उमा भारती बचपन से ही गीता-रामायण जैसे धार्मिक ग्रंथों का पाठ करती थीं। किशोर होते-होते उन्होंने इन ग्रंथों पर प्रवचन देना भी शुरू कर दिया। उमा की लोकप्रियता ने विजयाराजे सिंधिया का ध्यान आकर्षित किया और 1980 में वे उन्हें राजनीति में ले आई। उमा भारती ने 1984 में पहली बार भारतीय जनता पार्टी की ओर से खजुराहो से लोकसभा चुनाव लड़ा, लेकिन उस समय इंदिरा गांधी के असामयिक निधन के कारण जनता की सहानुभूति कांग्रेस के साथ थी, इसलिए सुश्री भारती जीत नहीं पाईं। 1988 में वे पार्टी की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष चुनी गईं। उन्होंने दूसरा चुनाव फिर खजुराहो से लड़ा और जीता भी। यह सिलसिला 1991,1996 और 1998 के लोकसभा चुनावों में भी जारी रहा। इतना ही नहीं, 1999 में भोपाल लोकसभा क्षेत्र से लड़े गये चुनाव में भी जीत का सेहरा उमा भारती के सिर ही बंधा।
सुश्री भारती, अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मानव संसाधन विकास राज्य मंत्री (1998-99), पर्यटन मंत्री (1999-2000), युवा एवं खेल मंत्री (2000-2002) तथा कोयला एवं खान मंत्री (2002-2003) रह चुकी हैं। 2003 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने उन्हें मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री के रूप में प्रस्तुत किया। उनके नेतृत्व में पार्टी को पहली बार अप्रत्याशित बहुमत मिला। वे स्वयं बड़ा मलहरा से विधायक चुनी गईं और 8 दिसम्बर, 2003 को वह प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। लेकिन वे ज्यादा दिनों तक इस कुर्सी पर काबिज नहीं रह सकीं। 1994 में हुबली (कर्नाटक) में हुई एक साम्प्रदायिक घटना में उन्हें आरोपी बनाया गया था। अपने ख़िलाफ़ गिरफ्तारी वारंट जारी होने के कारण नैतिकता के आधार पर 23 अगस्त 2004 को उन्होंने मुख्यमंत्री पद छोड़ दिया और पार्टी के वरिष्ठतम विधायक बाबूलाल गौर को प्रदेश की बागडोर सौंप दी। उन्हें उम्मीद थी, कि कर्नाटक से लौटने पर उन्हें दोबारा मुख्यमंत्री बना दिया जाएगा। लेकिन पार्टी ने श्री गौर को हटाकर शिवराज सिंह चौहान को मुख्यमंत्री बना दिया। इससे आहत उमा भारती भोपाल से अयोध्या तक की पद यात्रा पर निकल पड़ीं। इस यात्रा को उन्होंने राम रोटी यात्रा का नाम दिया। नवंबर, 2004 में पार्टी की एक महत्वपूर्ण बैठक में टीवी कैमरों के सामने ही उन्होंने पार्टी के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी को ही भला-बुरा कह डाला और बैठक छोड़कर चली गईं। उनके इस अप्रत्याशित और अपमान जनक व्यवहार का ख़ामियाज़ा उन्हें पार्टी से निलंबन के रुप में भुगतना पड़ा। राष्ट्रीय स्वयं सेवक के दबाव में मई 2005 में उमा जी का निलंबन वापस लेकर उन्हें फिर भाजपा कार्यकारिणी में शामिल कर लिया गया। लेकिन वे चाहती थीं, कि उन्हें या उनके किसी समर्थक को मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री बनाया जाये या फिर पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष। लेकिन यह मांग न माने जाने पर उन्होंने फिर एक बार पार्टी छोड़ दी और भारतीय जनशक्ति पार्टी का गठन किया। उन्हें गोविन्दाचार्य, प्रहलाद पटेल, मदनलाल खुराना और संघप्रिय गौतम जैसे नेताओं से सहयोग मिला। भाजपा छोड़ने के साथ ही उमा ने विधानसभा की सदस्यता से भी इस्तीफ़ा दे दिया। लेकिन इस कारण हुए उप चुनाव में वे अपनी समर्थक रेखा यादव को जिता नहीं पाई। इतना ही नहीं, 2008 के चुनाव में टीकमगढ़ विधानसभा क्षेत्र से खुद उमा भारती को कांग्रेसी उम्मीदवार से हार का सामना करना पड़ा। सुश्री भारती का तब भाजपा से मोह भंग भले ही हुआ, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और उससे जुड़े संगठनों से उनका लगाव बना रहा। उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव के अंतिम चरण में उन्होंने विश्व हिन्दू परिषद के अशोक सिंघल के कहने पर भाजपा के पक्ष में अपने प्रत्याशी वापस ले लिये। इसी तरह गुजरात का विधानसभा चुनाव लडऩे की अपनी घोषणा के बावजूद सुश्री भारती ने वहां से कोई उम्मीदवार खड़ा नहीं किया। 2009 के लोकसभा चुनाव में तो उन्होंने मध्यप्रदेश छोड़ अन्य राज्यों में भाजपा के पक्ष में चुनाव प्रचार भी किया। सुश्री भारती के ऐसे फ़ैसलों के कारण उनके भाजपा में लौटने की अटकलें बार- बार पैदा होती रहीं। ऐसा तब और हुआ, जब उन्होंने अपनी ही पार्टी भारतीय जनशक्ति के अध्यक्ष पद से 25 मार्च 2010 को त्याग पत्र दे दिया। पुनः 2011 में वह भाजपा में शामिल हो गईं और वर्ष 2012 में वह अपने निर्वाचन क्षेत्र में परिवर्तन करते हुए उत्तर प्रदेश विधान सभा से चुनाव लड़ी और विजयी हुईं। वर्ष 2014 में उन्हें केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा सफाई मंत्री बनाया गया।
विवादों और उमा भारती का चोली-दामन का साथ रहा है। माना जाता है, कि अयोध्या में विवादस्पद ढांचे को गिराने के लिए उन्होंने भी कारसेवकों को उकसाया था, इसलिए इस मामले में वे संघ-भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के साथ सह-आरोपी बनाई गईं। मुख्यमंत्री बनने के बाद भी कभी किसी मीडियाकर्मी, तो कभी अपने ही किसी समर्थक को चांटा मारने या फिर वक़्त-बेवक़्त नर्मदा स्नान के लिए चल पड़ने के कारण भी वे सुर्खियों में रहीं। चिंतक-विचारक गोविन्दाचार्य से उनके संबंधों की चर्चा भी दबी ज़बान में होती रही। हालांकि गोविन्दाचार्य ने एक साक्षात्कार में स्वीकार किया है, कि किसी समय वे और सुश्री भारती एक दूसरे के जीवन साथी बनना चाहते थे। औपचारिक शिक्षा से वंचित रह जाने के बावज़ूद सुश्री भारती की पढ़ने में गहरी रुचि है और वे धारा प्रवाह अंग्रेज़ी में वार्तालाप कर सकती हैं। 55 देशों की उनकी यात्रा भी उनके बौद्धिक क्षितिज का विस्तार करने में सहायक हुई है। उमा भारती एक लेखिका भी हैं उन्होंने 1972 में स्वामी विवेकानंद, 1979 में “पीस ऑफ़ माइंड” तथा 1983 में “मानव एवं भक्ति का नाता” जैसी पुस्तकें लिखी हैं।
अपने राजनीतिक कैरियर में उमा भारती निम्नलिखित महत्त्वपूर्ण पदों पर रहीं ——-
- 1988: मध्य प्रदेश भाजपा की उपाध्यक्ष
- 1989: खजुराहो से सांसद
- 1990: कृषि मंत्रालय में परामर्श समिति की सदस्य
- 1991: खजुराहो से पुनः सांसद
- 1991-93: पी.ए.सी. की सदस्य
- 1993: भाजयुमो की अध्यक्ष
- 1996: खजुराहो से पुनः सांसद
- 1996-97: विज्ञान और प्रोद्योगिकी, वन एवं पर्यावरण समिति की सदस्य
- 1998: खजुराहो से पुनः सांसद
- 1998-99: कैबिनेट राज्य मंत्री, मानव संसाधन विकास मंत्रालय
- 1999: भोपाल से सांसद
- 13 अक्टूबर 1999- 2 फ़रवरी 2000: कैबिनेट राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार), पर्यटन
- 7 नवम्बर 2000-25 अगस्त 2002: कैबिनेट मंत्री, युवा मामले एवं खेल
- 26 अगस्त 2002-29 जनवरी 2003: कैबिनेट मंत्री, कोयला एवं खदान
- 8 दिसम्बर 2003-23 अगस्त 2004: मध्य प्रदेश की मुख्यमंत्री
- 2012: उत्तर प्रदेश विधानसभा में विधायक
- 2014: भारत की जल संसाधन, नदी विकास और गंगा सफाई मंत्री
संदर्भ स्रोत – मध्यप्रदेश महिला संदर्भ
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