
छाया: पुष्पा द्रविड़ के एफ़बी अकाउंट से
सृजन क्षेत्र
चित्रकला एवं छायाकारी
प्रमुख चित्रकार
पुष्पा द्रविड़
• राकेश दीक्षित
इंदौर की बेटी पुष्पा द्रविड़ भित्तिचित्र (म्यूरल आर्ट ) कला में देश की जानी मानी कलाकार हैं। भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान राहुल की माँ होना उनकी अतिरिक्त पहचान है। वर्ष 1941 में इंदौर में जन्मी पुष्पा ने वहीं से पांचवी तक की शिक्षा ग्रहण की। इसके बाद वे ग्वालियर चली गईं। उन्होंने विक्रम विश्वविद्यालय से चित्रकारी के साथ अर्थशास्त्र और होम साइंस विषयों में स्नातक की उपाधि ली। यहीं से उन्होंने चित्रकला में स्नातकोत्तर उपाधि भी हासिल की। शिक्षा पूरी करने के बाद वे ग्वालियर के कमलाराजा महिला महाविद्यालय में चित्रकला की शिक्षक नियुक्त हुईं।
दो साल बाद पुष्पा अपने गृहनगर इंदौर में न्यू गर्ल्स डिग्री कॉलेज में पढ़ाने लगीं। वर्ष 1964 में उन्हें गणतंत्र दिवस के लिए मध्यप्रदेश सरकार की झांकी डिज़ाइन करने का मौका मिला। वर्ष 1968 तक 27 साल की उम्र में उनकी कला इतनी ख्यात हो गई थी कि युवा पुष्पा को चित्रकला से संबंधित विश्वविद्यालयों की अनेक समितियों में स्थान मिलना शुरू हो गया। पुरस्कारों का सिलसिला भी शुरू हो गया। 2017 में कर्नाटक चित्रकला परिषद ने उन्हें चित्रकला सम्मान से विभूषित किया। उसके पहले वर्ष 2000 में कर्नाटक ललित कला अकादमी ने उन्हें सम्मानित किया। अकादमी ने पहली बार उन्हें 1976 में चित्रकारों के लिए आयोजित वर्कशॉप में आमंत्रित किया था। तब से कर्नाटक के कला जगत में उनकी प्रसिद्धि लगातार बढ़ती गई। वर्ष 1998 में उनकी प्रतिभा को सराहते हुए अकादमी ने श्रवणबेलगोला के पुरातन भित्तिचित्रों की कॉपी करने के लिए उन्हें सम्मानित किया। पुष्पा पहली ऐसी चित्रकार हैं जिन्हें बैंगलोर विश्वविद्यालय ने चित्रकला में डॉक्टरेट की उपाधि दी थी।
पुष्पा को चित्रकला में रुचि बचपन से थी जब वे इंदौर में पढ़ रही थीं। वे बड़े चाव से रंगोली के आकर्षक पैटर्न उकेरती थीं। इस कला में उनकी दिलचस्पी और सघन हुई जब उन्होंने प्रसिद्ध कलाकार एलएस राजपूत को चित्रकारी करते देखा। वे पुष्पा के पड़ोस में रहते थे। राजपूत को पुष्पा में कलाकार होने की सम्भावना दिखी और उन्होंने नन्ही पड़ोसन का उत्साहवर्धन किया। वरिष्ठ कलाकार की देखरेख में पुष्पा ने आठ वर्षों तक चित्रकला के विभिन्न आयामों पर डटकर मेहनत की। वे पोट्रैट, लैंडस्केप, ग्राफ़िक मिट्टी की मॉडलिंग,लकड़ी पर चित्र उकेरना और भित्ति चित्र बनाना – सभी विधाओं में हाथ आजमाने लगीं।
वर्ष 1967 में विवाह के बाद वे बेंगलुरू आ गईं जहाँ उनकी कला को और निखार मिला। यहाँ उनकी मुलाकात एक चित्रकला प्रदर्शनी में विश्व प्रसिद्ध कलाकार डॉ रोरिख से हुई। संयोग से इसी प्रदर्शनी में उन्हें जानकारी मिली कि विश्वेसरैया कॉलेज ऑफ़ इंजीनियरिंग के स्थापत्य कला संकाय में कला शिक्षक की जगह खाली हैं। उन्हें खाली स्थान पर नियुक्ति मिल गई। लेकिन बतौर शिक्षक उनके सामने अपनी कला को स्थापत्य पढ़ाने की जरूरतों के अनुरूप ढालने की चुनौती थी। शिक्षण की जरूरतों के मुताबिक कला शिक्षक ने अपने हुनर को कई नए स्वरूपों में प्रस्तुत किया। भित्तिचित्र कला पर उनका विशेष ध्यान यहीं से शुरू हुआ।
बेंगलुरु के चिन्नास्वामी स्टेडियम में पुष्पा द्रविड़ के बनाये भित्तिचित्र महानगर ही नहीं पूरे देश में चर्चित है। स्टेडियम की विशाल दीवार पर कर्नाटक के प्रसिद्ध क्रिकेट खिलाडियों के चित्र उकेरे गए हैं। इन्हे बनाने में पुष्पा को छह वर्ष ( 2005 -2011 ) लगे थे।
पुष्पा ने एक साक्षात्कार में बताया था कि मालवा की लोककला से उन्हें चित्रकार बनने की प्रेरणा मिली। टेसू पर प्रचलित गीत की पंक्तियाँ उन्हें अभी भी याद हैं:
टेसू ,झांझी गए बाजार, वहां से लाए आम का अचार
मेरा टेसू यहीं अड़ा,खाने को मांगे दही बड़ा
महाराष्ट्र की लोक परंपरा में बच्चे यह गीत गाते हुए आसपास के घरों में जाते हैं। टेसू तीन पैरों पर खड़ा एक बिजूका होता है जिसकी लड़के पूजा करते हैं। झांझी मिट्टी का पात्र होता है जिसे लड़कियां अच्छा पति पाने की चाहत में पूजती हैं। इस लोक परम्परा से प्रभावित होकर पुष्पा द्रविड़ ने टेसू पर चित्रों की एक श्रृंखला तैयार की थी। इसे बेंगलुरु में 1983 में एकल प्रदर्शनी में उन्होंने प्रस्तुत किया था।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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पुष्पा द्रविड़ मेरे मामाजी स्वर्गीय चन्द्रेश सक्सेना की विद्यार्थी रहीं हैं।