
छाया : स्व सप्रेषित
सृजन क्षेत्र
टेलीविजन, सिनेमा और रंगमंच
प्रमुख प्रतिभाएँ
नेहा शरद
भारतीय टेलीविजन में लम्बे समय से सक्रिय नेहा शरद का जन्म 28 फरवरी 1969 को भोपाल में हुआ। उनके पिता श्री शरद जोशी ख्यातिलब्ध कहानीकार, व्यंग्यकार एवं पटकथा लेखक थे जबकि माँ इरफ़ाना सिद्दीकी शरद अपने समय की जानी-मानी रंगकर्मी थीं। ज़ाहिर है, नेहा जी को कला और संस्कृति से समृद्ध बचपन मिला। माँ के साथ वह अक्सर नाटकों के रिहर्सल में जातीं, परिणामस्वरूप नाटक के समस्त संवाद उन्हें याद हो जाते थे। एक बार किसी नाटक का मंचन चल रहा था, एक साथी ने इरफ़ाना जी को आकर बताया कि नेहा दर्शकों के बीच बैठी है और आगे-आगे संवाद बोल रही है। इसके बाद उन्हें वहाँ से उठाकर ग्रीन रूम में बिठा दिया गया। यद्यपि आगे चलकर कुछ नाटकों में उन्होंने अपनी माँ के साथ बाल कलाकार के रूप में भी काम किया, जैसे लंगड़ी टांग, ( परसाई जी के उपन्यास नागफनी पर आधारित) अबू हसन इत्यादि।
इसी तरह वह अक्सर पिता के लेखकीय कामकाज में भी सहायिका बनीं। नेहा जी के व्यक्तित्व निर्माण में इस परिवेश का गहरा असर रहा। एक वक़्त ऐसा आया जब शरद जी फ़िल्मों और धारावाहिकों के लेखन कार्य में व्यस्त हो गए और उन्होंने अपने परिवार को भी मुंबई बुला लिया। उस समय नेहाजी कमला नेहरु स्कूल में नौवीं कक्षा में थीं। आगे की पढ़ाई उन्होंने मुंबई से ही की। वर्ष 1989 में (वे 12वीं कक्षा में थीं) इप्टा द्वारा आयोजित नाट्य प्रतियोगिता में उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का पुरस्कार मिला। इसके बाद से वह इप्टा द्वारा मंचित नाटकों में नियमित रूप से काम करने लगीं। इस तरह एक ऐसा दरवाज़ा खुला जिसके भीतर उनका भविष्य उनकी प्रतीक्षा कर रहा था। अभिनय यात्रा की शुरुआत थियेटर से ही हुई, उन्होंने कई नाटकों में प्रमुख भूमिकाएं निभाई, जैसे – माउस ट्रैप, एक और द्रोणाचार्य, सूर्या, शतरंज के मोहरे, मोटेराम का सत्याग्रह, दिल ही तो है, श्याम रंग आदि। महाविद्यालयीन शिक्षा के दौरान थिएटर उनका हमकदम बना रहा।
उन्हीं दिनों निर्माता निर्देशक श्रीरमेश तलवार ने उनसे संपर्क किया और धारावाहिक मशाल में उन्हें पहला काम मिला। इसके बाद से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा। इस दौरान उन्हें कई बड़े निर्देशकों व कलाकारों के साथ काम करने और सीखने का अवसर प्राप्त हुआ। नेहाजी द्वारा अभिनीत शुरूआती दौर के कुछ प्रमुख धारावाहिक हैं – सुनहरे वर्क (निर्देशक मज़ाहिर रहीम ) हमराही पार्ट-2 ( कुंवर सिन्हा ), फ़रमान (लेख टंडन) ,परिवार (मज़ाहिर रहीम), ये दुनिया ग़ज़ब की (रमन कुमार) ,वक़्त की रफ़्तार (गौतम अधिकारी), शीला (रमन कुमार), महाराणा प्रताप (गूफी पेंटल),चंद्रकांता (नीरजा गुलेरी), बोर्नविटा क्विज शो – 2, रंगोली ! ( सभी में मुख्य या प्रमुख भूमिका ),कवि सम्मलेन। ये सभी धारावाहिक दूरदर्शन पर प्रसारित हुए थे क्योंकि उस समय तक निजी चैनल नहीं थे। बाद में तो कई चैनलों पर प्रसारित होने वाले पहले धारावाहिकों में अभिनय का अवसर नेहाजी को प्राप्त हुआ, जैसे -स्टार के पहले धारावाहिक ‘कोहरा’ में राज किरण के साथ प्रमुख भूमिका में, ईटीवी उर्दू के उद्घाटन समारोह में शाहबाज़ ख़ान के साथ एंकरिंग, होम टीवी के पहले धारावाहिक ‘त्रिकाल’ में मुख्य भूमिका, टीवी एशिया का प्रथम धारावाहिक वक़्त की रफ़्तार, सोनी टीवी का पहला धारावाहिक आहट में ओम पुरी एवं कँवलजीत के साथ प्रमुख भूमिका में, जीटीवी पर प्रसारित पहला धारावाहिक ‘तारा’ में आरजू राणा की भूमिका में।
इसके अलावा नेहा शरद, इरफ़ान खान के साथ अभिनीत कुछ धारावाहिकों का ज़िक्र करते हुए एक उम्दा सहकलाकार के रूप में उन्हें आज भी शिद्दत से याद करती हैं। वे यादगार धारावाहिक हैं – चन्द्रकान्ता (चपला की भूमिका में), ज़ी टीवी के लिए अधिकार, सहारा के लिए राजपथ । अन्य धारावाहिकों में सैलाब, शायद, भंवर, गुमराह, घरौंदा, मुझे डोर कोई खींचे, कैट्स, हॉलीवुड से बॉलीवुड तक, रवि ओझा के निर्देशन में स्टार प्लस पर प्रसारित धारावाहिक सबूत, सारथी, ममता, फिर भी आदि का नाम भी उल्लेखनीय है। ऐतिहासिक विषयों पर बने धारावाहिकों में संजय ख़ान के निर्देशन महाभारत (गंगा की भूमिका) एवं द्रौपदी में रुक्मिणी की भूमिका को वे यादगार मानती हैं। वर्ष 2009 में सोनी टीवी पर प्रसारित ‘लापतागंज’ में नेहाजी ने बतौर क्रिएटिव हेड काम किया । इसका पायलट एपिसोड इन्होंने ही लिखा था बाद में अपनी व्यस्तताओं को देखते हुए उन्होंने यह दायित्व अश्विन धीर को सौंप दिया।
इस तरह नेहा अब तक देश-विदेश में ढाई सौ मंचों पर शो कर चुकी हैं, जिसमें कविता पाठ, शरद जी के लेखों पर आधारित मंचन आदि सम्मिलित हैं। वे 30 से अधिक धारावाहिकों एवं कई विज्ञापनों में काम कर चुकी हैं। एक किताब (खुदा से खुद तक) लिख चुकी हैं, कई अख़बारों में कॉलम लिख चुकी हैं। साथ ही आध्यात्मिक गुरु ‘मेहर बाबा’ पर आधारित 45 मिनट के वृत्त चित्र का लेखन व निर्देशन कर चुकी हैं। शरद जी की स्मृति में मुंबई में पिछले सत्रह सालों से हर साल कार्यक्रम का आयोजन करती रही हैं जिसमें नामी-गिरामी हस्तियां हिस्सा लेती हैं। वर्तमान में नेहा जी मुंबई में रहते हुए अपनी रचनात्मकता को परिस्थिति के अनुसार आकार देने में प्रयासरत हैं।
सन्दर्भ स्रोत: स्व संप्रेषित तथा नेहा जी से सारिका ठाकुर की बातचीत पर आधारित
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