
छाया: बजाज ग्रुप
प्रेरणा पुंज
विशिष्ट महिलाएं
जानकीदेवी बजाज
• राकेश दीक्षित
महात्मा गाँधी के पुत्रवत अनुयायी जमनालाल बजाज का स्वाधीनता संग्राम में योगदान आधुनिक भारत के इतिहास में विस्तार से दर्ज है। बजाज उद्योग घराने के संस्थापक और समाज सुधारक जमनालाल बजाज के आग्रह पर ही महात्मा गाँधी अपना आश्रम साबरमती से उठाकर वर्धा ले गए थे। लेकिन कम ही लोगों को पता होगा कि जमनालाल जी की ससुराल पश्चिमी मध्यप्रदेश की तत्कालीन जावरा रियासत में थी। उनकी पत्नी जानकी देवी, जिन्होंने पति के साथ कंधे से कंधा मिलाकर बापू के आदर्शों और मूल्यों का प्रचार-प्रसार किया था, जावरा राज्य के जरोरा गांव में जन्मी थीं।
जानकी देवी ने 1956 में प्रकाशित अपनी आत्मकथा में बहुत सरल हिंदी में अपनी जीवन यात्रा का वर्णन किया है। लगभग 2 सौ पृष्ठों की जीवनी पाठकों को रोमांचित करती है कि किस तरह एक संपन्न वैष्णव परिवार के धार्मिक और रूढ़िवादी परिवेश में पली बढ़ी लड़की अपने ओजस्वी पति का साथ और महात्मा गाँधी की प्रेरणा से साहसी और प्रगतिशील समाज सुधारक बनी। आत्मकथा की प्रस्तावना बिनोवा भावे ने लिखी है जिन्हें जानकी देवी अपना भाई मानती थीं। आत्मकथा में जावरा राज्य में बिताए अपने बचपन का जानकी देवी ने सजीव वर्णन किया है।
उनका जन्म 7 जनवरी 1893 को एक संपन्न मारवाड़ी परिवार में हुआ था। महज आठ साल की उम्र में उनका विवाह जमनालाल बजाज से कर दिया गया और 1902 में वे महाराष्ट्र के वर्धा नगर आ गईं। जमनालाल जी – जिन्हें गाँधीजी अपना पांचवा पुत्र मानते थे, सादगी भरा जीवन व्यतीत कर रहे थे। उनका परिवार संपन्न था लेकिन तब तक वे उद्योगपति नहीं बने थे।
आत्मकथा में जानकी देवी लिखती हैं कि पति के त्याग और सादगी ने उन्हें भी गाँधी के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित किया। जानकी देवी ने जमनालाल के कहने पर सामाजिक वैभव और कुलीनता के प्रतीक बन चुकी पर्दा प्रथा का त्याग करने में ज़रा भी झिझक नहीं दिखाई। उन्होंने अन्य महिलाओं को भी पर्दा प्रथा त्यागने के लिए प्रोत्साहित किया। यह 1919 की बात है, जब जानकी देवी की उम्र 26 साल थी। दो वर्ष बाद उन्होंने अपने रेशम के वस्त्रों को त्याग कर खादी को अपनाया। वो अपने हाथों से सूत काततीं और सैकड़ों लोगों को भी सूत कातना सिखातीं।
वर्धा में जब विदेशी सामानों की होली जलायी जा रही थी, जानकी देवी ने तब विदेशी कपड़ों के थान आग में झोंकने में महिलाओं की अगुवाई की। तब तक गाँधी की प्रेरणा का पारस -स्पर्श पाकर बजाज परिवार की पूरी तरह स्वदेशी आंदोलन में उतर चुका था। असहयोग आन्दोलन के दौरान गाँधी जी ने किसी जनसभा में भारतीयों – विशेषकर महिलाओं से, स्वर्णाभूषण दान करने की अपील की। यह बात जमनालाल जी ने अपनी पत्नी को चिट्ठी में लिखकर बताई। जानकी जी ने उसी वक़्त अपने स्वर्णाभूषण त्याग दिए और जीवन में फिर कभी सोना धारण नहीं किया।
17 जुलाई 1928 को जानकी जी जमनालाल बजाज जी के साथ वर्धा के लक्ष्मीनारायण मंदिर पहुंची और उसके दरवाज़े सर्वसाधारण के लिए खोल दिए । छुआछूत के खिलाफ यह एक क्रांतिकारी कदम था।लेकिन अस्पृश्यता के विरुद्ध लड़ाई में वे यहीं नहीं रुकीं। उन्होंने अपने घर में रसोई के लिए एक दलित स्त्री को रखा और उसे भोजन पकाना सिखाया। धीरे – धीरे जानकी देवी का समाज सुधारक के रूप में स्वतंत्र व्यक्तित्व सामने आने लगा। गांधी जी का सन्देश देने के लिए वे सार्वजनिक गतिविधियों में पूरी तरह व्यस्त हो गईं। उनकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैलने लगी।
जानकी देवी राजनीतिक आंदोलनों से ज्यादा सामाजिक सुधार के कार्यक्रमों में दिलचस्पी लेती थीं। यही वजह उन्हें विनोबा भावे के करीब ले आई। भूदान आंदोलन के प्रणेता के साथ उन्होंने कूप दान, ग्राम सेवा, गौसेवा और भू दान जैसे आन्दोलनों में बढ़चढ़कर हिस्सा लिया। महिला शिक्षा के मुद्दे पर भी उन्होंने बहुत काम किया। वे 1942 से कई वर्षों तक अखिल भारतीय गौ सेवा संघ की अध्यक्ष रहीं। आत्मकथा में उन्होंने ज़िक्र किया है कि गायों के लिए उनमे बचपन से ही अपार प्रेम था। उन्होंने कुटीर उद्योग के माध्यम से ग्रामीण विकास में काफी सहयोग किया। उनके व्यक्तित्व में एक विरोधाभास सा था। वे दानी भी थीं और मितव्ययी भी, कठोर भी थीं लेकिन दयालु भी। इस विरोधाभास को विनोबाजी ने आत्मकथा की प्रस्तावना में रेखांकित किया है।
देश आज़ाद होने के बाद भी जानकी देवी की सामाजिक कार्यों में व्यस्तता कम नहीं हुई। वर्ष 1956 में सामाजिक कार्यों के लिए भारत सरकार ने उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया। 21 मई 1979 को 86 वर्ष की उम्र में उनका देहांत हो गया। उल्लेखनीय है कि प्रख्यात उद्योगपति राहुल बजाज एवं शेखर बजाज उनके पौत्र हैं। फ़िक्की अर्थात फ़ेडेरेशन ऑफ़ चैम्बर्स ऑफ़ कॉमर्स ऑफ़ इंडिया की महिला विंग ने ग्रामीण उद्यमियों के लिए सन 1992-93 में (जानकी जी की जन्म शताब्दी के अवसर पर) आई.एम.सी महिला विंग जानकी देवी पुरस्कार की स्थापना की है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं ।
© मीडियाटिक
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