
छाया: दि प्रिंट डॉट इन
प्रेरणा पुंज
विशिष्ट महिलाएं
जया बच्चन
शुद्ध भारतीय सौंदर्य की प्रतिमूर्ति पद्मश्री जया भादुड़ी हिन्दी फिल्मों में नरगिस, मीना कुमारी की परंपरा को आगे बढ़ाने वाली अभिनेत्री हैं। जया बच्चन का जन्म मध्य प्रदेश के जबलपुर जिले में 9 अप्रैल, 1948 को हुआ। इंदिरा और लेखक-पत्रकार तरुण कुमार भादुड़ी की बेटी जया ने बॉलीवुड की चमक-दमक भरी दुनिया में बगैर अंग प्रदर्शन के अपनी हैसियत बनाई और चोटी की अभिनेत्री बनी। उनकी सादगी और कला के क्षेत्र में विशिष्ठ पहचान के आधार पर समाजवादी पार्टी ने 2004 में उन्हें पार्टी की ओर से राज्ससभा में भेजा। इसके साथ ही वे उत्तरप्रदेश फिल्म विकास परिषद का अध्यक्ष भी बनीं। लेकिन जया का राजनीतिक जीवन विवादों से परे नहीं रहा। हिन्दी- मराठी के मुद्दे पर टकराव हो या नेहरू-गांधी परिवार के बारे में टिप्पणी, उनके पति अमिताभ को हर मामले में सफाई देने आगे आना पड़ा। दूसरी ओर बच्चन परिवार को समाजवादी पार्टी में लाने वाले अमर सिंह खुद पार्टी से अलग हो गए, लेकिन जया मुलायम सिंह के साथ बनी रहीं। हालांकि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुड़े एक नेता द्वारा होशंगाबाद में आयोजित नदी महोत्सव में भी विशिष्ट अतिथि के रूप में शामिल होने से उन्होंने परहेज नहीं किया। 2018 में वह चौथी बार राज्यसभा में प्रवेश किया।
हिन्दी फिल्मों में आने के पहले जया ने तीन बंगला फिल्में की थी। सत्यजीत रे की फिल्म महानगर में जया ने पहली बार कैमरे का सामना किया। उस समय वह स्कूल में पढ़ती थी। स्कूली शिक्षा पूरी कर जया ने पुणे फिल्म संस्थान से अभिनय का प्रशिक्षण लिया और ऋषिकेश मुखर्जी के निर्देशन में गुड्डी में काम किया। गुड्डी 1971 में रिलीज हुई। इस फिल्म की शूटिंग के दौरान ही जया की मुलाकात अमिताभ से हुई। 1973 में जंजीर की सफलता के बाद दोनों ने विवाह कर लिया। तब तक जया स्टार बन चुकी थी और अमिताभ संघर्ष कर रहे थे। दोनों ने अभिमान, मिली, चुपके-चुपके में साथ काम किया और जया ने अपनी अभिनय क्षमता का परचम लहरा दिया। शोले तो दोनों की बाद की फिल्म है। जया ने जीतेंद्र के साथ परिचय के अलावा संजीव कुमार के साथ कई फिल्में की और सभी सफल रही। नायिका के रूप में सिलसिला उनकी आखिरी फिल्म थी। जया ने चंचल चुलबुली लडक़ी का रोल किया तो कभी बेहद गंभीर भूमिका भी निभाई। लेकिन दो बच्चों, अभिषेक और श्वेता की मां बनने के बाद अचानक उन्होंने फिल्मों को अलविदा कह दिया। बेटे और बेटी की बेहतर परवरिश के लिए उन्होंने यह निर्णय लिया। जब बच्चे बड़े हो गए तो उन्होंने फिल्मों में फिर से प्रवेश किया। 18 साल के अंतराल के बाद अपनी नई पारी में जया ने नक्सली पृष्ठभूमि पर आधारित हजार चौरासी की मां फिल्म में यादगार भूमिका की। यह फिल्म 1998 में रिलीज हुई । 2000 में फिल्म फिजा जो मिशन कश्मीर पर आधारित थी में ऋतिक रोशन की मां की भूमिका की ।
2017 में रिलीज हुई ‘द ग्रेट लीडर’ उनकी अंतिम फिल्म है। अपने फ़िल्मी कैरियर में में उन्हें 9 बार फिल्म फेयर पुरस्कार प्राप्त हुआ।
इस फिल्म में उत्कृष्ट अभिनय के लिए जया को सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री का फिल्म फेयर पुरस्कार प्राप्त हुआ। जया अपने पति अमिताभ के साथ भी कभी खुशी कभी गम में काम किया । कल हो न हो, द्रोण और लागा चुनरी में दाग के रिलीज के बाद उनकी दूसरी पारी अभी चल रही है । बेहद साधारण चेहरे- मोहरे, किंतु बेजोड़ भाव प्रदर्शन से जयाजी ने जो मुकाम हासिल किया, वह अपने आप में एक मिसाल है।
उपलब्धियां
1992 – भारत सरकार की ओर से नागरिक सम्मान पद्मश्री
1998 – ओमेगा लाइफटाइम एचीवमेंट
2004 – उत्तरप्रदेश सरकार की ओर से सर्वोच्च नागरिक सम्मान-यश भारती अवार्ड
2004 – सन्सुई लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड
1974 – फिल्मफेयर : सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री अभिमान के लिए
1975 – फिल्मफेयर: सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री कोरा कागज के लिए
1980 – फिल्मफेयर: सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री नौकर के लिए
1998 – फिल्म फेयर: फिल्म उद्योग में विशेष योगदान के लिए
2001 – फिल्मफेयर और जी सिने अवार्ड: सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री (फिजा)
2002 – फिल्मफेयर: सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री (कभी खुशी कभी गम)
2004 – फिल्मफेयर: सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री (कल हो न हो)
2007 – फिल्मफेयर: लाइफटाइम एचीवमेंट अवार्ड
अन्तर्राष्ट्रीय भारतीय फिल्म अकादमी (आईफा)
2001 – सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री (फिजा)
2002 – सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री (कभी खुशी कभी गम)
2004 – सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेत्री (कल हो न हा)
2010 – लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड लंदन में ‘फायर ऑन द टंग’ फिल्म फेस्टिवल के दौरान
संदर्भ स्रोत – मध्यप्रदेश महिला संदर्भ
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