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गायत्री देवी परमार
आज़ादी के समय देश के बाकी हिस्सों की तरह छतरपुर में भी महिलाओं की स्थिति अच्छी नहीं थी। वे अशिक्षा,पर्दा प्रथा और घरेलू हिंसा के चक्रव्यूह में बुरी तरह फंसी हुईं थीं। शहर की कुछ पढ़ी-लिखी महिलाओं ने इस चक्रव्यूह को तोड़ने का बीड़ा उठाया। इन महिलाओं में से एक थी स्वतंत्रता सेनानी और पूर्व विधायक गायत्री देवी परमार। आज 93 साल की उम्र में भी उनका पूरा समय महिलाओं से जुड़े मुद्दों को सुलझाने में ही गुजरता है। वे हर समय महिलाओं की मदद के लिए तैयार रहती हैं। आश्चर्य नहीं कि बुंदेलखंड में वे महिला शक्ति की प्रतीक मानी जाती हैं।
राज्य पुनर्गठन के पूर्व छतरपुर विंध्य प्रदेश में था, जिसकी राजधानी नौगांव हुआ करती थी। गायत्री देवी बताती हैं कि उनके साथ तत्कालीन स्कूल ऑफ इंस्पेक्टर सावित्री देवी, लीलावती दोसांज, गुरु प्यारी, चंद्रवती गर्ग, तत्कालीन पुलिस अधीक्षक की पत्नी रामरानी जौहर ने वर्ष 1953 में महिला मंडल का गठन किया था। उस समय मंडल महिलाओं को भजन-कीर्तन के साथ प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम के माध्यम से जागरूक करता था। इस दौरान अनेक अनपढ़ महिलाओं ने इस कार्यक्रम के माध्यम से साक्षरता हासिल की जो उनके स्वावलम्बन में सहायक हुई।
महिला मंडल के काम से स्थिति में बदलाव से प्रभावित विंध्य प्रदेश के तत्कालीन उप राज्यपाल केसी संथानम ने सभी जिलों में महिलाओं की स्थिति में और बेहतर सुधार किए जाने के लिए समितियों का गठन किया। ये समितियां अर्धशासकीय थीं, जिन्हें अपने क्रियाकलापों के लिए सरकारी मदद मिलती थी। लेकिन मप्र राज्य का गठन होने के बाद इन समितियों को अचानक भंग कर दिया गया। इसके बावजूद महिला मंडल का काम नहीं रुका। महिला हिंसा के खिलाफ आयोजित यात्रा समिति का अलग से पंजीयन कराया गया और पीड़ित महिलाओं को संघर्ष का रास्ता दिखा कर उनमें आत्म विश्वास जागृत किए जाने का सिलसिला जारी रहा। जिससे उनके जीवन में व्यापक परिवर्तन देखने को मिला। इसके बाद समिति ने घरेलू हिंसा की रोकथाम के लिए काम करना शुरू किया। महिला समिति द्वारा वर्ष 2002 में छतरपुर जिले पचास गांव में महिला प्रताड़ना के खिलाफ यात्रा निकाली और घरेलू हिंसा के प्रति महिलाओं को जागरुक किया था।
1928 में जन्मी स्वतंत्रता सेनानी गायत्री देवी परमार मूलत: उप्र के मुरादाबाद जिले की रहने वाली हैं। उनके पिता स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। महात्मा गांधी द्वारा वर्ष 1942 में चलाए गए भारत छोड़ो आंदोलन में अपने पिता के साथ गायत्री देवी ने भी सहभागिता की थी। उस समय वे विद्यार्थियों व युवाओं के साथ मिलकर अंग्रेज़ी हुकूमत के खिलाफ प्रदर्शन भी किया करती थीं। उनके पिता का सपना था कि उनकी बेटी का जीवन साथी भी आज़ादी की लड़ाई लड़ने वाला ही कोई नौजवान हो। इसलिए उनका विवाह स्वतंत्रता सेनानी जंंगबहादुर सिंह से 1948 में हुआ। वे मप्र की पहली विधानसभा में छतरपुर ज़िले के बड़मलहरा – बिजावर द्वि-सदस्यीय क्षेत्र से चुनाव जीतकर विधायक बनीं। तब महिला विधायकों की संख्या 30 थी। इनमें ग्वालियर से श्रीमती चंद्रकला सहाय, देवास से मंजुला बाई वागले, छतरपुर से गायत्री देवी और विद्यावती चतुर्वेदी, रतलाम से सुमन जैन प्रमुख थीं।
श्रीमती परमार का मध्यप्रदेश के किसानों के हित में भू राजस्व संहिता के निर्माण में भारी योगदान रहा। वे सिलेक्ट कमेटी की सदस्य थीं। बीए-बीटी एलएलबी तक शिक्षित होने के कारण कानूनी एवं शिक्षा के मुद्दों पर भी उनकी राय को तरजीह दी जाती थी। उन्होंने कृषि भूमि में महिलाओं को उत्तराधिकार दिलाने के लिए संघर्ष किया। मध्यप्रदेश स्त्री शिक्षा राज्य परिषद तथा माध्यमिक शिक्षा मण्डल की सदस्य रहते हुए पिछड़े क्षेत्र की महिलाओं के लिए निर्धारित शैक्षणिक स्तर को कम करवाने में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही। माध्यमिक शिक्षा मण्डल के पाठ्यक्रमों को सरल बनवाने के उनके प्रयासों से सरकारी सरकारी नौकरियों में लड़कियों के जाने के रास्ते खुल गए। गायत्री देवी ने 1962 में वकालत शुरू की और सात साल तक सरकारी वकील रहीं। 1990 से उन्होंने अपने क्षेत्र की उत्पीड़ित महिलाओं के लिए काम करना शुरू किया और उन्हें न केवल न्याय दिलवाया बल्कि उन्हें संरक्षण भी प्रदान किया। गायत्री देवी आज भी समाज सेवा के क्षेत्र में सक्रिय हैं तथा महिला आश्रय गृह का संचालन कर रहीं हैं।
संदर्भ स्रोत : पत्रिका डॉट कॉम