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उर्मिला सिंह
राष्ट्रीय अनुसूचित जाति, जनजाति आयोग की अध्यक्ष रहीं कांग्रेस की वरिष्ठ नेत्री उर्मिला सिंह 25 जनवरी, 2010 को हिमाचल प्रदेश की राज्यपाल का पदभार संभाला और इस तरह वे देश की प्रथम आदिवासी महिला राज्यपाल तो बनीं । सदियों से शोषण और उत्पीड़न झेलते आ रहे आदिवासी समाज को शिक्षा के साधन उपलब्ध करवाने और उन्हें मुख्यधारा में लाने के उर्मिला जी के प्रयास सराहनीय हैं। अपनी सरलता और मृदुभाषिता से वे मिलने वाले व्यक्ति को पहली मुलाकात में ही प्रभावित कर लेती थीं । कठिन से कठिन समय में भी उनके चेहरे पर मुस्कान बनी रहती थी। वे जगद्गुरू शंकराचार्य स्वामी स्वरुपानंदजी की समर्पित शिष्या भी थीं।
उर्मिला जी का जन्म 6 अगस्त, 1946 को अपनी मौसी के घर फिंगेश्वर, जिला राजिम (छत्तीसगढ़) में हुआ। वहीं से प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करने के बाद उन्होंने रायपुर से बीए, एलएलबी की उपाधि प्राप्त की। उनका विवाह राजनीति में गहरी पकड़ रखने वाले सरायपाली के राज परिवार में हुआ। उनकी सास श्याम कुमारी देवी सांसद थीं और पति वीरेन्द्र बहादुर सिंह अविभाजित मध्यप्रदेश में विधायक रहे। वैसे उर्मिला जी को राजनीति विरासत में ही मिल गई थी। उनके दादा शहीद राजा नटवर सिंह उर्फ लल्ला को ब्रिटिश शासकों ने फांसी की सजा दी थी । परिवार के अन्य सदस्यों को भी काला पानी की सजा मिली थी।
सामाजिक न्याय एवं आदिवासी कल्याण मंत्री रहते हुए उर्मिला जी ने सुदूर ग्रामीण अंचलों में आदिवासी छात्रावास शुरू करवाने के लिए जो बीड़ा उठाया था, वह आगे चलकर मील का पत्थर साबित हुआ। आदिवासियों के प्रति उनकी संवेदना इस हद तक थी, कि हिमाचल प्रदेश में राज्यपाल का पद ग्रहण करते ही वे सबसे पहले शिमला स्थित आदिवासी छात्रावास देखने गईं, जहां अनियमितताओं और यौन शोषण का गंभीर मामला उनके सामने आया। उनके इस आकस्मिक निरीक्षण से हिमाचल प्रदेश में हलचल मच गई थी।
उर्मिला जी ने अपना पहला चुनाव 1977 में जनता पार्टी की टिकट पर घंसौर से लड़ा, जिसमें वे चुनाव असफल रहीं। 1985 में उन्होंने फिर घंसौर (सिवनी) से ही कांग्रेस के टिकट पर लड़ा और विधानसभा सदस्य बनीं। इसके बाद इसी क्षेत्र से वे 1990 में भाजपा के डाल सिंह से चुनाव हार गईं। पुन: 1998 में वे इसी विधानसभा क्षेत्र से सदस्य चुनी गईं। प्रदेश मंत्रिमण्डल में 1993 में उन्हें शामिल कर वित्त और दुग्ध विकास की ज़िम्मेदारी सौंपी गई। सन 1996 से 98 तक प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष बनने वाली पहली महिला भी उर्मिला जी ही थीं। उनके इस पद पर रहते हुए कांग्रेस को विधानसभा चुनाव में प्रदेश की सभी आदिवासी सीटों पर में विजय प्राप्त हुई थी। संभवत: इसीलिए उन्हें 1998 में सामाजिक न्याय एवं आदिवासी कल्याण मंत्री का दायित्व सौंपा गया। इस मंत्री पद पर वे 2003 तक रहीं। अपने कार्यकाल में आदिवासियों के हित में अनेक महत्वपूर्ण निर्णय- जिसमें आदिवासी क्षेत्रों में जल संरक्षण एवं प्रबंधन का कार्य उल्लेखनीय है, उन्होंने लिए। उनकी क्षमता को देखते हुए अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने उन्हें राष्ट्रपति चुनाव के दौरान उड़ीसा का निर्वाचन अधिकारी बनाया था। श्रीमती सिंह ने अ. भा. कांग्रेस कमेटी की कार्यकारिणी तथा अनुशासनात्मक कार्यवाही समिति में निर्विवाद सदस्य के रूप में भी अपनी छाप छोड़ी । 18 जून, 2007 से 24 जनवरी, 2010 तक वे राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग की अध्यक्ष रहीं।
श्रीमती सिंह मध्य प्रदेश में समाज कल्याण बोर्ड की अध्यक्ष (1988-89), केन्द्र सरकार में समाज कल्याण बोर्ड की सदस्य (1978-90), सदस्य- मप्र अनुसूचित जाति-जनजाति कल्याण सलाहकार समिति (1978-80), सदस्य- राष्ट्रीय खाद्य एवं पोषण बोर्ड (1986-88), संस्थापक सदस्य- उज्जैन सिटीज़न फोरम (1988), अध्यक्ष- मप्र आदिवासी महिला संगठन (1993) होने के साथ ही प्रदेश के अनेक सामाजिक संगठनों से जुडक़र स्वैच्छिक सेवा प्रदान करती रहीं। भारतीय संविधान समिति की सदस्य के रूप में उन्होंने प्राय: सभी यूरोपीय देशों का दौरा भी किया।
संदर्भ स्रोत- मध्यप्रदेश महिला संदर्भ